Do desh aur tisari udasi
Material type:
- 8185127654
- H BHA M
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H BHA M (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168095 |
बरसों इंग्लैण्ड में रहने के अपने अपमानजनक जीवन से अंततः छुटकारा पा कर दो भारत-पागल क़िस्म के प्रवासी हिन्दुस्तानी, जो कि दोस्त भी हैं (एक अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ और दूसरा सपरिवार), वापस हिन्दुस्तान, घर आते हैं दोनों ही 'किसी भी हालत में इंग्लैण्ड वापस न जाने का तहैय्या करके 'हमेशा के लिए' ।
वापसी पर उन्हें यहाँ आकर कैसा लगता है, दिल्ली और हिन्दुस्तान कैसा लगता है, माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त-यार, मकान, गलियाँ, सड़कें, पेड़-पौधे—अलबत्ता यहाँ का मानो आदमी-आदमी, औरत औरत, बच्चा-बच्चा, पत्ता-पत्ता, जर्रा-जर्रा (जिसे देखने के लिए और एक ख़ास तीव्र ढंग में देखने के लिए वे मजबूर होते हैं) कैसा लगता है और वे अपनी ही तरह पश्चिम में बरसों रहने के बाद घर आकर फिर से बसने आए मगर न बस पा सकने वाले अनेक प्रवासियों की तरह वापस पश्चिम जाते हैं कि नहीं, अपनी सभ्यता को दूसरी सभ्यता के लिए छोड़ पाते हैं कि नहीं, यह कहानी इन्हीं बातों की है।
मगर ये बातें अलग से टुकड़ा टुकड़ा करके बिलकुल नहीं आतीं बल्कि कहानी का अविभाज्य, अटूट और ज़्यादातर मूल अंग बन कर आती हैं। अलबत्ता पालम पर उतरते ही, बल्कि उससे भी पहले, पीछे बहरीन से ही ऐसा घटना क्रम शुरू हो जाता है कि सारे का सारा उपन्यास–जिसमें प्रेम, नफ़रत, खुंदक, अत्याचार, बदसूरती, खोज, कायरता, लगाव, विरोध आदि की अनेक मगर एक दूसरे में और फिर मुख्य कहानी से गुँथी हुई कहानियाँ हैं—किसी जासूसी उपन्यास की तरह ऐसी दिलचस्पी और उत्सुकता-भरा प्रवाह बनाए रखता है कि पाठक उसमें बहता चला जाता है।
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