Pahari lok sahitya sanskar geet
Material type:
- H 398.2 PAH
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 398.2 PAH (Browse shelf(Opens below)) | Available | 52162 |
कवि 'युगद्रष्टा होता है। वह समाज और जीवन के प्रति अभिनव दृष्टिकोण रखता है और इस अभिनव दृष्टिकोण के साथ नैसर्गिक प्रतिभा का सामंजस्य करके समाज की मान्यताओं का मूल्यांकन करता है और सत्य तथा असत्य का प्रतिपादन करता है। इसी लिए वेद उन्हें 'कवयः सत्यच तः कहता है अर्थात् वे दिव्यसत्ता का श्रवण करने वाले तथा उसे प्रदर्शित करने वाले होते हैं। वे 'फवियः कान्तदर्शिनः' है । भूत, भविष्य और अतीन्द्रिय विषयों को जानने वाले होते हैं। आज भले ही हम कवि को कविता का सर्जन करने बाले साहित्यकार मानते हैं, परन्तु सुदूर प्राचीन काल में कवियों को ऋषि की उपाधि दी जाती थी। वैदिक धारणा के अनुसार वह नित्य नूतन ज्ञान विज्ञान का प्रत्यक्ष दर्शी और दर्शयिता है। ऋग्वेद की रचना भारद्वाज, अत्रि, वशिष्ठ जैसे ज्ञान, विज्ञान और तप से परिपूत महात्माओं के द्वारा की गई थी। कवि का व्यक्तित्व दिव्य होता है।
कवि का व्यक्तित्व द्विमुखी है। जहां वह सत्य भ्रष्टा है वहां वह सत्यदर्शिन भी है। जो देखता है उसे दिखाता भी है। वह द्रष्टव्य और धव्य को रचनात्मक रूप देता है। साहित्य रचना उसके व्यक्तित्व का प्रायना है। साहित्य की सर्वप्रथम उपयोगिता यह है कि उससे पाठक को संस्कृति के मत्पक्ष का परिचय मिले। इस प्रकार संस्कृति के विकास के साथ साहित्य की सांस्कृतिक भूमिका का सतत विन्यास होता है ।
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