Is Paani Me Aag : इस पानी में आग
Material type:
- 9789393091802
- H 891.4301 MIS
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4301 MIS (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180476 |
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युवा कवि विनय मिश्र समय-सजग तो हैं ही, आत्म-सजग भी हैं। इतिहास और परंपरा से उनका जो रिश्ता है, आधुनिकता से उसका कोई विरोध नहीं है। विरोध है तो उस आधुनिकतावाद से, जिसके चलते हिंदी कविता निरी गद्यात्मक हुई है। इसलिए इन दोहों का एक प्रतिरोधी पक्ष भी है। वही हमारे सांस्कृतिक क्षरण की भरपाई करता है। आज के हालात में, जबकि धर्माडंबर ही साधना का सर्वोच्च रूप बना दिया गया है, विनय कहते हैं: ‘इससे ज्यादा कुछ नहीं, दौलत मेरे पास/मजहब है इंसानियत, जिंदा है अहसास।’ यहाँ एक नीति कथन या नैतिक आग्रह तो है, उपदेशात्मकता नहीं है। कविता से आज के लोक की अपेक्षा भी यही है। एक ओर जीवन और समाज को विरूप करनेवाली प्रवृत्तियाँ तो दूसरी ओर मनुष्य के आंतरिक भाव-सौंदर्य का शब्दांकन। विनय का दोहाकार समकालीन यथार्थ की दाहकता और उसकी जीवनधर्मी सुवास, दोनों को पहचानता है। उसे चुप्पियों का कोलाहल और कोलाहल की चुप्पियाँ, दोनों बेचैन करती हैं।
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