Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

Is Paani Me Aag : इस पानी में आग

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Little Bird 2024Description: 128pISBN:
  • 9789393091802
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.4301 MIS
Summary: युवा कवि विनय मिश्र समय-सजग तो हैं ही, आत्म-सजग भी हैं। इतिहास और परंपरा से उनका जो रिश्ता है, आधुनिकता से उसका कोई विरोध नहीं है। विरोध है तो उस आधुनिकतावाद से, जिसके चलते हिंदी कविता निरी गद्यात्मक हुई है। इसलिए इन दोहों का एक प्रतिरोधी पक्ष भी है। वही हमारे सांस्कृतिक क्षरण की भरपाई करता है। आज के हालात में, जबकि धर्माडंबर ही साधना का सर्वोच्च रूप बना दिया गया है, विनय कहते हैं: ‘इससे ज्यादा कुछ नहीं, दौलत मेरे पास/मजहब है इंसानियत, जिंदा है अहसास।’ यहाँ एक नीति कथन या नैतिक आग्रह तो है, उपदेशात्मकता नहीं है। कविता से आज के लोक की अपेक्षा भी यही है। एक ओर जीवन और समाज को विरूप करनेवाली प्रवृत्तियाँ तो दूसरी ओर मनुष्य के आंतरिक भाव-सौंदर्य का शब्दांकन। विनय का दोहाकार समकालीन यथार्थ की दाहकता और उसकी जीवनधर्मी सुवास, दोनों को पहचानता है। उसे चुप्पियों का कोलाहल और कोलाहल की चुप्पियाँ, दोनों बेचैन करती हैं।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gandhi Smriti Library H 891.4301 MIS (Browse shelf(Opens below)) Available 180476
Total holds: 0

युवा कवि विनय मिश्र समय-सजग तो हैं ही, आत्म-सजग भी हैं। इतिहास और परंपरा से उनका जो रिश्ता है, आधुनिकता से उसका कोई विरोध नहीं है। विरोध है तो उस आधुनिकतावाद से, जिसके चलते हिंदी कविता निरी गद्यात्मक हुई है। इसलिए इन दोहों का एक प्रतिरोधी पक्ष भी है। वही हमारे सांस्कृतिक क्षरण की भरपाई करता है। आज के हालात में, जबकि धर्माडंबर ही साधना का सर्वोच्च रूप बना दिया गया है, विनय कहते हैं: ‘इससे ज्यादा कुछ नहीं, दौलत मेरे पास/मजहब है इंसानियत, जिंदा है अहसास।’ यहाँ एक नीति कथन या नैतिक आग्रह तो है, उपदेशात्मकता नहीं है। कविता से आज के लोक की अपेक्षा भी यही है। एक ओर जीवन और समाज को विरूप करनेवाली प्रवृत्तियाँ तो दूसरी ओर मनुष्य के आंतरिक भाव-सौंदर्य का शब्दांकन। विनय का दोहाकार समकालीन यथार्थ की दाहकता और उसकी जीवनधर्मी सुवास, दोनों को पहचानता है। उसे चुप्पियों का कोलाहल और कोलाहल की चुप्पियाँ, दोनों बेचैन करती हैं।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha