Bik nahin sakti qalam
Material type:
- 9789363067325
- H 891.4301 RAH
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4301 RAH (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180469 |
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H 891.4301 MIS Sanjh : kawita, ghazals, shayari-sangrah | H 891.4301 PRA Mohan das | H 891.4301 PRI Saat sau bees qadam | H 891.4301 RAH Bik nahin sakti qalam | H 891.4301 RAY Niruttar | H 891.4301 RIN Sadiyon ke par | H 891.4301 SHA Teergi mein roshani |
वरिष्ठ साहित्यकार बालस्वरूप राही ने कविता के साथ-साथ साहित्य की अनेक विधाओं में लेखन कार्य किया है। ‘बिक नहीं सकती कलम’ में संगृहीत इनकी गजलें आत्मा के उत्स से निकली स्फूर्त झरने जैसी हैं जो पाठक के मन पर गिरती हैं। मद्धिम गति और पूरी पारदर्शिता से। जहाँ कुछ भी छिपाया या रोका न गया हो। जहाँ राही जी सौंदर्य का संधान करने वाले कवि हैं वहीं उनका रचना संसार हमें उपेक्षा के उन कोने-अँतरों से परिचित कराता है जहाँ हमारी निगाह तक नहीं जाती। अपने एक शेर में वे कहते हैं.
‘रात-भर सुलगा रहा तन्दूर, ये अच्छा हुआ
शाम से बैठे थे कुछ मजदूर, ये अच्छा हुआ’
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