Jashn-E-Deewangi
Material type:
- 9788119989874
- H 891.431 MAH
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.431 MAH (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180347 |
कहने की शैली जितनी पठनीय बन पाती है उतनी की लयात्मकता के साथ शायर अपने शब्दों को शायराना गीतों में आबद्ध कर पाता है। उल्लेखनीय है कि राहुल रंजन महिवाल की शायरी पर भी इस उक्ति का प्रभाव दिखाई देता है। शायरी, गीत और नज़्म की रचनात्मकता में पनपती शाब्दिक अनुभूतियों का आश्रय शायर को पहले-पहल मोहम्मद रफ़ी साहब के गाए शायराना गीतों को सुनकर मिला था। जो यह कहने के लिए पर्याप्त अवसर देता है कि इस संग्रह की शायरी भी फ़िल्मी अन्दाज़ की निश्छलता से लबालब भरी हुई है। ‘जश्न-ए-दीवानगी’ में शामिल सौ से अधिक ग़ज़लों, गीतों और नज़्मों का विषय क्षेत्र पर्याप्त विविधता और आस्वाद से परिपूर्ण है। शायर न केवल इश्क़िया मनोभावों को इनमें रचने में सफल हुआ है बल्कि सामाजिक सरोकारों की लयात्मकता को चिह्नित करने का कार्य भी बख़ूबी करता है। कोई भी शायर जब अपने शब्दों को गढ़ रहा होता है तो वह अनुभूति के स्तर पर अपने पाठकों को झकझोरने और उनकी चेतना में नए अनुभवों की संरचना का दायित्व जगाने का कार्य करता ही है। उर्दू शायरी में यह कार्य जिस तत्परता से होता रहा है वह उल्लेखनीय है। इधर हिन्दी शायरी में भी यह प्रयास मुक़म्मल ढंग से होने लगा है। राहुल रंजन महिवाल अपनी पुस्तक ‘जश्न-ए-दीवानगी’ में शायरी विधा और उसकी पसंदगी का वही अनुभव पैदा करते हैं। जो अवश्य ही शायरी के रसिकों और सुधि पाठकों को सुरुचिपूर्ण लगेगा।
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