Urdu ki ishqiya shayari
Material type:
- 9788170555889
- JP 891.431 GOR
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | JP 891.431 GOR (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169872 | ||
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Gandhi Smriti Library | H 891.431 GOR (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169123 |
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फ़िराक़ गोरखपुरी - उर्दू की इश्क़िया शायरी - ‘फ़िराक़' बाद को मुमकिन है यह भी हो न सके। अभी तो हँस भी ले, कुछ रो भी ले, वो आएँ न आएँ।। इन्तज़ार की घड़ियाँ हैं। अभी माशूक़ के आने का वक़्त है। आशा और निराशा में खींचातानी हो रही है। अभी तो यह सम्भव है कि ख़ुश हो लें या उदास हो लें, कुछ हँस लें, कुछ रो लें। लेकिन जब यह वक़्त गुज़र जायेगा तो उस समय माशूक आ चुका होगा या यह निश्चय हो चुका होगा कि वह नहीं आयेगा। उस समय कहा नहीं जा सकता कि हँसना या रोना सम्भव होगा या नहीं। अगर माशूक़ आ चुका है तो भी प्रेमी की वह दशा हो सकती है जो न उसे रोने दे न हँसने दे; और अग़र न आना तय हो चुका है तो भी यही हालत हो सकती है यानी साँस रुककर रह जाए, जीवन की गति अचानक ठहर जाये। उस समय रोना-हँसना कैसा! इसलिए ऐ प्रेमी, ये दोनों लीलाएँ इन्तज़ार की घड़ियों में, दुविधा की दशा में, हो लेने दे। अज़ीज़ लखनवी का यह शेर देखें : दिल का छाला फूटा होता। काश ये तारा टूटा होता।। शीश-ए-दिल को यों न उठाओ। देखो हाथ से छूटा होता।।
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