Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

Urdu ki ishqiya shayari

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani 2014Edition: 3rd edDescription: 87pISBN:
  • 9788170555889
Subject(s): DDC classification:
  • JP 891.431 GOR
Summary: फ़िराक़ गोरखपुरी - उर्दू की इश्क़िया शायरी - ‘फ़िराक़' बाद को मुमकिन है यह भी हो न सके। अभी तो हँस भी ले, कुछ रो भी ले, वो आएँ न आएँ।। इन्तज़ार की घड़ियाँ हैं। अभी माशूक़ के आने का वक़्त है। आशा और निराशा में खींचातानी हो रही है। अभी तो यह सम्भव है कि ख़ुश हो लें या उदास हो लें, कुछ हँस लें, कुछ रो लें। लेकिन जब यह वक़्त गुज़र जायेगा तो उस समय माशूक आ चुका होगा या यह निश्चय हो चुका होगा कि वह नहीं आयेगा। उस समय कहा नहीं जा सकता कि हँसना या रोना सम्भव होगा या नहीं। अगर माशूक़ आ चुका है तो भी प्रेमी की वह दशा हो सकती है जो न उसे रोने दे न हँसने दे; और अग़र न आना तय हो चुका है तो भी यही हालत हो सकती है यानी साँस रुककर रह जाए, जीवन की गति अचानक ठहर जाये। उस समय रोना-हँसना कैसा! इसलिए ऐ प्रेमी, ये दोनों लीलाएँ इन्तज़ार की घड़ियों में, दुविधा की दशा में, हो लेने दे। अज़ीज़ लखनवी का यह शेर देखें : दिल का छाला फूटा होता। काश ये तारा टूटा होता।। शीश-ए-दिल को यों न उठाओ। देखो हाथ से छूटा होता।।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gandhi Smriti Library JP 891.431 GOR (Browse shelf(Opens below)) Available 169872
Books Books Gandhi Smriti Library H 891.431 GOR (Browse shelf(Opens below)) Available 169123
Total holds: 0

फ़िराक़ गोरखपुरी - उर्दू की इश्क़िया शायरी - ‘फ़िराक़' बाद को मुमकिन है यह भी हो न सके। अभी तो हँस भी ले, कुछ रो भी ले, वो आएँ न आएँ।। इन्तज़ार की घड़ियाँ हैं। अभी माशूक़ के आने का वक़्त है। आशा और निराशा में खींचातानी हो रही है। अभी तो यह सम्भव है कि ख़ुश हो लें या उदास हो लें, कुछ हँस लें, कुछ रो लें। लेकिन जब यह वक़्त गुज़र जायेगा तो उस समय माशूक आ चुका होगा या यह निश्चय हो चुका होगा कि वह नहीं आयेगा। उस समय कहा नहीं जा सकता कि हँसना या रोना सम्भव होगा या नहीं। अगर माशूक़ आ चुका है तो भी प्रेमी की वह दशा हो सकती है जो न उसे रोने दे न हँसने दे; और अग़र न आना तय हो चुका है तो भी यही हालत हो सकती है यानी साँस रुककर रह जाए, जीवन की गति अचानक ठहर जाये। उस समय रोना-हँसना कैसा! इसलिए ऐ प्रेमी, ये दोनों लीलाएँ इन्तज़ार की घड़ियों में, दुविधा की दशा में, हो लेने दे। अज़ीज़ लखनवी का यह शेर देखें : दिल का छाला फूटा होता। काश ये तारा टूटा होता।। शीश-ए-दिल को यों न उठाओ। देखो हाथ से छूटा होता।।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha