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Premchand ka aprapya sahitya : khand 1

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani Prakashan 2016Description: 703 pISBN:
  • 9789352295128
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.4385 GOE
Summary: प्रेमचन्द की कालगत निकटत तथा उनके विपुल उपलब्ध साहित्य को देखते हुए हमें इसकी कल्पना भी नहीं होती कि उनकी अनेक रचनाएँ कालप्रवाह के साथ हमारी दृष्टि से ओझल हो सकती हैं। यह एक साहित्यिक दुर्भाग्य ही है कि धीरे-धीरे अपूर्ण प्रेमचन्द साहितय को ही पूर्ण माना जाने लगा है। इस अभाव की पूर्ति के रूप में 'प्रेमचन्द का अप्राप्य साहित्य' के ये दो खण्ड प्रकाशित किये गये हैं जो उनके अज्ञात, अप्राप्य, अप्रकाशित एवं सहज रूप से अनुपलब्ध साहित्य को पूरी प्रामाणिकता के साथ पाठकों को उपलब्ध कराते हैं। इनमें प्रेमचन्द की सैकड़ों पृष्ठों की ऐसी रचनाएँ भी हैं, जो कभी हिन्दी में प्रकाशित नहीं हुईं। प्रथम खण्ड में अनुवाद, उपन्यास, कहानी, दस्तावेज़ तथा पुस्तक-समीक्षा इत्यादि शीर्षकों से अप्राप्य रचनाएँ दी गयी हैं। तथा द्वितीय खण्ड में प्रेमचन्द के पत्र, प्रेमचन्द के नाम पत्र, भूमिकाएँ, लेख एवं सम्पादकीय तथा परिशिष्ट ऐसी ही दुर्लभ सामग्री है। इस नये उपलब्ध साहित्य से न केवल प्रेमचन्द - साहित्य को पूर्णता एवं समग्रता में देखा-समझा जा सकेगा, बल्कि उनकी सर्जनात्मकता, चिन्तन-धारा आदि के सम्बन्ध में भी नयी दिशाओं का बोध हो सकेगा। प्रेमचन्द के अध्ययन, अध्यापन एवं विश्लेषण तथा मूल्यांकन में इस नये • अप्राप्य साहित्य का महत्त्व असंदिग्ध है। इस महत् कार्य का संकलन-सम्पादन एवं लिप्यन्तरण किया है देश-विदेश में ख्याति प्राप्त, प्रेमचन्द के विशेषज्ञ डॉ. कमल किशोर गोयनका ने। डॉ. गोयनका की निरन्तर शोध-साधना के फलस्वरूप ही इतना विपुल अप्राप्य साहित्य पाठकों के सम्मुख आ सका है।
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प्रेमचन्द की कालगत निकटत तथा उनके विपुल उपलब्ध साहित्य को देखते हुए हमें इसकी कल्पना भी नहीं होती कि उनकी अनेक रचनाएँ कालप्रवाह के साथ हमारी दृष्टि से ओझल हो सकती हैं। यह एक साहित्यिक दुर्भाग्य ही है कि धीरे-धीरे अपूर्ण प्रेमचन्द साहितय को ही पूर्ण माना जाने लगा है। इस अभाव की पूर्ति के रूप में 'प्रेमचन्द का अप्राप्य साहित्य' के ये दो खण्ड प्रकाशित किये गये हैं जो उनके अज्ञात, अप्राप्य, अप्रकाशित एवं सहज रूप से अनुपलब्ध साहित्य को पूरी प्रामाणिकता के साथ पाठकों को उपलब्ध कराते हैं। इनमें प्रेमचन्द की सैकड़ों पृष्ठों की ऐसी रचनाएँ भी हैं, जो कभी हिन्दी में प्रकाशित नहीं हुईं।

प्रथम खण्ड में अनुवाद, उपन्यास, कहानी, दस्तावेज़ तथा पुस्तक-समीक्षा इत्यादि शीर्षकों से अप्राप्य रचनाएँ दी गयी हैं। तथा द्वितीय खण्ड में प्रेमचन्द के पत्र, प्रेमचन्द के नाम पत्र, भूमिकाएँ, लेख एवं सम्पादकीय तथा परिशिष्ट ऐसी ही दुर्लभ सामग्री है। इस नये उपलब्ध साहित्य से न केवल प्रेमचन्द - साहित्य को पूर्णता एवं समग्रता में देखा-समझा जा सकेगा, बल्कि उनकी सर्जनात्मकता, चिन्तन-धारा आदि के सम्बन्ध में भी नयी दिशाओं का बोध हो सकेगा। प्रेमचन्द के अध्ययन, अध्यापन एवं विश्लेषण तथा मूल्यांकन में इस नये • अप्राप्य साहित्य का महत्त्व असंदिग्ध है।

इस महत् कार्य का संकलन-सम्पादन एवं लिप्यन्तरण किया है देश-विदेश में ख्याति प्राप्त, प्रेमचन्द के विशेषज्ञ डॉ. कमल किशोर गोयनका ने। डॉ. गोयनका की निरन्तर शोध-साधना के फलस्वरूप ही इतना विपुल अप्राप्य साहित्य पाठकों के सम्मुख आ सका है।

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