Ibarat se giri matrayean (Record no. 346862)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 04499nam a22001697a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field 0
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20220803163611.0
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 8187482230
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 891.4301
Item number VAJ
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Vajpeyi, Ashok
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Ibarat se giri matrayean
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Bikaner
Name of publisher, distributor, etc. Vagdevi
Date of publication, distribution, etc. 2002
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 144 p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. कविता कालसम्भवा होती है, कालबाधित नहीं। अशोक वाजपेयी की कविता न केवल इस बात से बखूबी वाक़िफ़ है बल्कि यह भी जानती है कि कविता का समय सम्बन्ध सर्जनात्मक तभी हो पाता है जब समय की सेवा में उपस्थित होने के बजाय कविता उसी के माध्यम से उस का अतिक्रमण करती और अपना निजी सच बरामद करती है। ये कविताएँ समय के सच की अनदेखी न करते हुए, बल्कि उसे बूझते हुए — और शायद इसी कारण - चाहती हैं कि शुरू को आख़िर तक ले जाने वाली डोर /सपने की ही हो, भले सच से बिंधी हुई क्योंकि कविता अन्ततः सपने के परिवार की होती है, सच की बिरादरी की नहीं। कविता की प्रक्रिया अर्थात् निजी सत्य को व्यापक सत्य में रूपान्तरित करने के लिए ये कविताएँ आधुनिक हिन्दी कविता में एक निजी भाषा और काव्यविधि का आविष्कार करती हैं। यह काव्यविधि स्मृति और वर्तमान को एक दूसरे के बरक्स रखने में है जहाँ सपना दोनों का सन्दर्भ बिन्दु है— सपना जो जितना अतीत है, उतना ही भविष्य भी। इस के लिए अशोक वाजपेयी जो भाषा बुनते हैं वह जिस हद तक एक निजी अनुभूति को व्यापकत्व और सम्प्रेषणीयता देती है, उसी हद तक व्यापक सत्य को निजी प्रामाणिकता भी, जिस में निजता और व्यापकत्व का भेद मिट-सा जाता है। इसीलिए पोते के लिए लिखी गयी कविताओं की भाषिक संरचना और संवेदना के अन्तस्सूत्र आशविट्ज पर केन्द्रित कविताओं से मिल जाते हैं। रूप और संवेदन के काव्यात्मक एकत्व का एक तरीका शायद यह भी है जहाँ विषयों की भिन्नता के बावजूद उन की अन्तर्वस्तु के रेशे अन्तः ग्रथित होते हैं।<br/>अशोक वाजपेयी की कविता समय के धूल-धक्खड़, खून कीचड़, राख से जलने या भस्म होने से बचे हुए शब्द उठा कर उन में पवित्रता की खनखनाहट सुनती और इस प्रकार शब्द को पुनः एक विश्वसनीयता देना चाहती है—अपने समय के बरक्स इस आकांक्षा और कोशिश में ही तो कविकर्म की सार्थकता है। इस संग्रह की कविताएँ इसी सार्थकता का अर्जन है।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Hindi poetry
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
Holdings
Withdrawn status Lost status Damaged status Not for loan Home library Current library Date acquired Cost, normal purchase price Total checkouts Full call number Barcode Date last seen Price effective from Koha item type
  Not Missing Not Damaged   Gandhi Smriti Library Gandhi Smriti Library 2022-08-03 140.00   H 891.4301 VAJ 168410 2022-08-03 2022-08-03 Books

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