Hindi bhasha aur sansar : (Record no. 346372)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 03640nam a22001817a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field 0
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20220419225120.0
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9789391277062
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number H 491.43 VAJ
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Vajpeyi, Udayan.
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Hindi bhasha aur sansar :
Remainder of title Ashok Vajpeyi se Udyan Vajpeyi ka samvad
250 ## - EDITION STATEMENT
Edition statement 1st ed.
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. Noida
Name of publisher, distributor, etc. Setu Prakashan
Date of publication, distribution, etc. 2021
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 120 p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. हिन्दी में ऐसे कम लेखक हुए हैं जिन्होंने श्रेष्ठ लेखन करने के अलावा हिन्दी भाषा की समृद्धि और व्यापकता पर अपनी कविताओं और आलोचनात्मक गद्य में निरन्तर विचार किया हो। अशोक वाजपेयी ऐसे ही एक लेखक हैं जिन्होंने स्वयं को हिन्दी भाषा की संस्कृति से एकाकार किया हुआ है। इस पुस्तक में प्रकाशित उनसे लम्बा संवाद हिन्दी भाषा और संस्कृति पर किया गया है। इस संवाद को इस दृष्टि से किया गया था कि हमारे इस मुश्किल समय में हम भले ही सार्वजनिक संस्थानों को राजनैतिक शक्तियों के हाथों नष्ट होने से न बचा पायें पर हम कम-से कम अपनी भाषाओं को बचाने का ऐसा कार्य अवश्य कर सकें जिसके सहारे भविष्य में हम अपनी सांस्कृतिक टूट-फूट को दुबारा दुरुस्त कर सकें। जिस समाज में भाषा पर निरन्तर विचार होता है, उसमें निरन्तर सृजन होता है, वह समाज अपने आप को किसी भी टूट-फूट से बाहर निकालने की स्थिति में बना रहता है।<br/><br/>इस पुस्तक के दूसरे भाग में अशोक वाजपेयी के कृतित्व पर लिखे कुछ निबन्ध हैं, उनमें से एक संस्मरण है। इन निबन्धों में उनके सृजनात्मक लेखन को समझने का प्रयास तो है ही साथ ही उनकी सृजनशीलता का सम्बन्ध उनके संस्थान स्थपति स्वरूप से जोड़ने का प्रयत्न भी है। इस प्रयत्न के पीछे यह दृष्टि रही है कि मनुष्य के तमाम कार्यों के बीच एक तरह की अदृश्य अन्तर्निष्ठता अवश्य होती है। उसके कार्य एक-दूसरे से असम्बद्ध लगते हुए एक-दूसरे से अदृश्य रूप से जुड़े होते हैं ।
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Hindi Literature
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
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