Hindi bhasha aur sansar : Ashok Vajpeyi se Udyan Vajpeyi ka samvad
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TextPublication details: Noida Setu Prakashan 2021Edition: 1st edDescription: 120 pISBN: - 9789391277062
- H 491.43 VAJ
| Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.43 VAJ (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168083 |
हिन्दी में ऐसे कम लेखक हुए हैं जिन्होंने श्रेष्ठ लेखन करने के अलावा हिन्दी भाषा की समृद्धि और व्यापकता पर अपनी कविताओं और आलोचनात्मक गद्य में निरन्तर विचार किया हो। अशोक वाजपेयी ऐसे ही एक लेखक हैं जिन्होंने स्वयं को हिन्दी भाषा की संस्कृति से एकाकार किया हुआ है। इस पुस्तक में प्रकाशित उनसे लम्बा संवाद हिन्दी भाषा और संस्कृति पर किया गया है। इस संवाद को इस दृष्टि से किया गया था कि हमारे इस मुश्किल समय में हम भले ही सार्वजनिक संस्थानों को राजनैतिक शक्तियों के हाथों नष्ट होने से न बचा पायें पर हम कम-से कम अपनी भाषाओं को बचाने का ऐसा कार्य अवश्य कर सकें जिसके सहारे भविष्य में हम अपनी सांस्कृतिक टूट-फूट को दुबारा दुरुस्त कर सकें। जिस समाज में भाषा पर निरन्तर विचार होता है, उसमें निरन्तर सृजन होता है, वह समाज अपने आप को किसी भी टूट-फूट से बाहर निकालने की स्थिति में बना रहता है।
इस पुस्तक के दूसरे भाग में अशोक वाजपेयी के कृतित्व पर लिखे कुछ निबन्ध हैं, उनमें से एक संस्मरण है। इन निबन्धों में उनके सृजनात्मक लेखन को समझने का प्रयास तो है ही साथ ही उनकी सृजनशीलता का सम्बन्ध उनके संस्थान स्थपति स्वरूप से जोड़ने का प्रयत्न भी है। इस प्रयत्न के पीछे यह दृष्टि रही है कि मनुष्य के तमाम कार्यों के बीच एक तरह की अदृश्य अन्तर्निष्ठता अवश्य होती है। उसके कार्य एक-दूसरे से असम्बद्ध लगते हुए एक-दूसरे से अदृश्य रूप से जुड़े होते हैं ।

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