Bhashayee asmita aur Hindi

Shrivastava, Ravindranath

Bhashayee asmita aur Hindi - New Delhi Vani 1996 - 228 p.

भाषा किसी भी भाषाई समुदाय के सदस्यों को अन्दरूनी तौर पर जोड़ने और बाँधने वाली एक जबर्दस्त ताकत के साथ-साथ एक संगठित समुदाय में अलगाव और बिखराव पैदा करने वाला एक हथियार भी है। भाषा में जोड़ने और तोड़ने वाली ताकत एक ही चीज के दो पहलू हैं, और वह चीज है सामाजिक अस्मिता ।
हिन्दी न तो मात्र व्याकरण और न ही वह केवल विशिष्ट भाषिक संरचना है। भाषा के रूप में वह एक सामाजिक संस्था भी है, संस्कृति के रूप में वह सामाजिक प्रतीक भी है, और साहित्य के रूप में वह एक जातीय परम्परा भी है।
इस पुस्तक में संकलित लेखों में सामाजिक अस्मिता और भारतीय बहुभाषिकता के सन्दर्भ में हिन्दी भाषा के कुछ ऐसे पहलू पर विचार किया गया है जो एक ओर विद्वानों के लिए बहस के मुद्दे बने हुए हैं और दूसरी तरफ हमारी भाषा नीति पर आज प्रश्नचिह्न बने हुए हैं।

8170552419

H 491.43 SHR 2nd ed.

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