Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

1000 paryavaran prashnottary

By: Material type: TextTextPublication details: Delhi; Satsahitya Prakashan; 1999Description: 191pISBN:
  • 8185830983
Subject(s): DDC classification:
  • H 333.7076 SAL c.1
Summary: हमारी पृथ्वी का एक नाम 'वसुधा' भी है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' भारतीय संस्कृति का उद्घोष है हमारी वसुधा, जो इनसानों, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों का घर है, संकट से घिरी है। वातावरण के प्रदूषण ने उसका गला घोंट रखा है। औद्योगिक विकास की गति बढ़ने से, शहरीकरण और वाहनों की बढ़ती संख्या से वायु प्रदूषण की समस्या अनुभव की जा रही है। पर्यावरण से संबंधित बहुत से मुद्दे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं- पानी का बेकार बहना, ऊर्जा खपत, ईंधन खपत, कूड़ा-कचरा, मल-मूत्र निपटान आदि की समस्या । प्रकृति की साझेदारी में वायुमंडल एवं जीवमंडल का एक निश्चित अनुपात है। यह अनुपात जब भी बिगड़ता है, प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है। यदि मनुष्य कुदरत के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ न करे तो विपदाओं से बचा जा सकेगा। सदियों से प्रकृति के प्रति हमारा अगाध स्नेह रहा है। इसीलिए आज भी इस बात की जरूरत है कि हम प्रकृति के बारे में सजग बनें। प्रस्तुत पुस्तक पर्यावरण के संबंध में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देने के साथ साथ विषय के प्रति पाठकों में उत्सुकता व जिज्ञासा का भाव भी उत्पन्न करेगी, ऐसा विश्वास है।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gandhi Smriti Library H 333.7076 SAL (Browse shelf(Opens below)) Available 66971
Total holds: 0

हमारी पृथ्वी का एक नाम 'वसुधा' भी है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' भारतीय संस्कृति का उद्घोष है हमारी वसुधा, जो इनसानों, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों का घर है, संकट से घिरी है। वातावरण के प्रदूषण ने उसका गला घोंट रखा है। औद्योगिक विकास की गति बढ़ने से, शहरीकरण और वाहनों की बढ़ती संख्या से वायु प्रदूषण की समस्या अनुभव की जा रही है। पर्यावरण से संबंधित बहुत से मुद्दे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं- पानी का बेकार बहना, ऊर्जा खपत, ईंधन खपत, कूड़ा-कचरा, मल-मूत्र निपटान आदि की समस्या । प्रकृति की साझेदारी में वायुमंडल एवं जीवमंडल का एक निश्चित अनुपात है। यह अनुपात जब भी बिगड़ता है, प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है। यदि मनुष्य कुदरत के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ न करे तो विपदाओं से बचा जा सकेगा।

सदियों से प्रकृति के प्रति हमारा अगाध स्नेह रहा है। इसीलिए आज भी इस बात की जरूरत है कि हम प्रकृति के बारे में सजग बनें।

प्रस्तुत पुस्तक पर्यावरण के संबंध में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देने के साथ साथ विषय के प्रति पाठकों में उत्सुकता व जिज्ञासा का भाव भी उत्पन्न करेगी, ऐसा विश्वास है।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha