Stri ka manusyatva: samyik sahitya vimarsh
Material type:
- 9788189303150
- H 828.914 TIW
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 828.914 TIW (Browse shelf(Opens below)) | Checked out to Narmada Hostel OT Launge (NARMADA) | 2023-09-29 | 168082 |
'स्त्री का मनुष्यत्व' में कवि कथाकार मालचंद तिवाड़ी अनेक गंभीर साहित्यिक प्रश्नों से रूबरू होते हैं। बांग्ला उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास, 'चरित्रहोन' को सहनायिका किरणमयी के अपने चरित्र विश्लेषण में वे उपन्यास लेखन की कला के सन्दर्भ से कई बुनियादी सवाल उठाते हैं। वे पूछते हैं क्या कला ही वह दर्पण नहीं है जिसमें झांककर हम अपने औसत किरदार से मुक्ति पा सकते हैं? तिवाड़ी मानते हैं कि लेखक होना इसी परम मनुष्यता के धोखे में विश्वास रखना है। किरणमयी के रूपान्तरण को उनकी व्याख्या में प्रेम का स्पर्श ही उसके चरित्र को मनुष्यता में आलोकित करता है, न कि कोई जड़ीभूत सामाजिक मूल्य व्यवस्था। यहां वे लेखक के अपने विचारों व उसके कलाकर्म के बीच के इन्द्र को भी रेखांकित करते हैं। इस संग्रह में तिवाड़ी अपने अग्रेजों के साथ-साथ अपने समकालीन और युवतर लेखकों की कलात्मक अन्वेषण की प्रक्रिया को भी एक सुधरे साहित्य-विवेक की कसौटी पर परखते हैं और कुछ सामान्य निष्कर्ष सामने रखते हैं। उनका मानना है कि • अभिया से भी कविता संभव हो सकती है और संस्कृतियों की परस्पर आवाजाही के लिए अनुवाद भले ही एक अपरिहार्य कर्म हो, मगर इसके अपने खतरे भी कम नहीं।
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