Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

Dwi mintau maun

By: Material type: TextTextPublication details: Dehradun Samay sakshay 2020Description: 92 pISBN:
  • 9789388165808
Subject(s): DDC classification:
  • UK 891.4301 SUN
Summary: 'द्वी मिन्टौ मौन' युवा कवि आशीष सुन्दरियाल को पहलो कविता संग्रह छ, जै मा आज की गढ़वाली युवा कविता की अंद्वार दिखे सकेंद। अपणो राज हूणा का बावजूद घर पहाड़ मा अंधाघोर, अभावग्रस्त जीवन अर विनाशकारी पलायन की मार तथा भैर प्रवास मा उपेक्षित अपछ्याणक अर नित तनावग्रस्त रहन-सहन का दबाव से समाज मा घार बूण द्विया जगा एक मोहभंग की स्थिति पैदा होण लगि गे अर नवीन राजनीतिक-आर्थिक परिस्थित्यं मा अपणा अस्तित्व, पछ्याण व बेहतर जीवन की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति का वास्ता संजेती साधनु की नई तलाश शुरू होण लगि गे। भाषा-साहित्य अर संस्कृति का प्रति विशेष जागरूकता उफरण लगि गे। विशेष रूप से पढ्यां लिख्यां वर्ग मा अपणी भाषा तैं पूर्ण भाषा मने जावा, को नयो आत्मविश्वास पैदा होण लगि गे। भाषा अर संस्कृति को सवाल राजनीतिक परिदृश्य मा प्रमुखता हासिल करण लगि गे।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gandhi Smriti Library UK 891.4301 SUN (Browse shelf(Opens below)) Available 168391
Total holds: 0

'द्वी मिन्टौ मौन' युवा कवि आशीष सुन्दरियाल को पहलो कविता संग्रह छ, जै मा आज की गढ़वाली युवा कविता की अंद्वार दिखे सकेंद। अपणो राज हूणा का बावजूद घर पहाड़ मा अंधाघोर, अभावग्रस्त जीवन अर विनाशकारी पलायन की मार तथा भैर प्रवास मा उपेक्षित अपछ्याणक अर नित तनावग्रस्त रहन-सहन का दबाव से समाज मा घार बूण द्विया जगा एक मोहभंग की स्थिति पैदा होण लगि गे अर नवीन राजनीतिक-आर्थिक परिस्थित्यं मा अपणा अस्तित्व, पछ्याण व बेहतर जीवन की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति का वास्ता संजेती साधनु की नई तलाश शुरू होण लगि गे। भाषा-साहित्य अर संस्कृति का प्रति विशेष जागरूकता उफरण लगि गे। विशेष रूप से पढ्यां लिख्यां वर्ग मा अपणी भाषा तैं पूर्ण भाषा मने जावा, को नयो आत्मविश्वास पैदा होण लगि गे। भाषा अर संस्कृति को सवाल राजनीतिक परिदृश्य मा प्रमुखता हासिल करण लगि गे।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha