Image from Google Jackets

Vayumandaleeya pradooshan

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi; Rajkamal; 1994Description: 166pDDC classification:
  • H 363.73 SRI
Summary: वायुमंडलीय प्रदूषण आज जिस तरह सघन होता जा रहा है, उससे पृथ्वी, प्रकृति और संपूर्ण -जगत को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। जीवन-ज‍ इसके मूल कारणों में हैं तीव्र होता जा रहा शहरीकरण, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और बढ़ती हुई आबादी । डॉ. हरिनारायण श्रीवास्तव की यह पुस्तक पर्यावरण अथवा वायुमंडल- प्रदूषण की गंभीर समस्या का वैज्ञानिक अध्ययन है। अपने अध्ययन क्षेत्र के विशिष्ट विद्वान डॉ. श्रीवास्तव ने पूरी पुस्तक को आठ अध्यायों में बाँटा है। पहले अध्याय में वायुमंडल, जलवायु और वायविलय संबंधी जानकारी है। दूसरे में मौसम और प्रदूषक मापक आधुनिक उपकरणों का विवरण है। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्याय में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव, उनके नियंत्रण आदि की चर्चा है। छठे में क्लोरोफ्लूरो कार्बन के ओजोन परत पर पड़ रहे दुष्प्रभाव और उसकी प्रक्रिया को समझाया गया है। सातवें अध्याय में अम्ल वर्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, तथा आठवें में तापमान, वर्षा, पवनगति, सौर विकिरण एवं कृषि आदि पर निरंतर बढ़ती जा रही कार्बन डाइऑक्साइड एवं विरल गैसों के संभावित दुष्प्रभावों का विवेचन किया गया है। परिशिष्ट में दिए गए कुछ महत्वपूर्ण अध्ययन निष्कर्षो तथा प्रत्येक अध्याय में यथास्थान शामिल विभिन्न तालिकाओं और रेखाचित्रों ने इस पुस्तक की उपयोगिता में और बढ़ोतरी की है। कहना न होगा कि वर्तमान सभ्यता पर मंडराते सर्वाधिक घातक खतरे के प्रति आगाह करनेवाली यह कृति एक मूल्यवान वैज्ञानिक अध्ययन है।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gandhi Smriti Library H 363.73 SRI (Browse shelf(Opens below)) Available 65659
Total holds: 0

वायुमंडलीय प्रदूषण आज जिस तरह सघन होता जा रहा है, उससे पृथ्वी, प्रकृति और संपूर्ण -जगत को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। जीवन-ज‍ इसके मूल कारणों में हैं तीव्र होता जा रहा शहरीकरण, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और बढ़ती हुई आबादी ।

डॉ. हरिनारायण श्रीवास्तव की यह पुस्तक पर्यावरण अथवा वायुमंडल- प्रदूषण की गंभीर समस्या का वैज्ञानिक अध्ययन है। अपने अध्ययन क्षेत्र के विशिष्ट विद्वान डॉ. श्रीवास्तव ने पूरी पुस्तक को आठ अध्यायों में बाँटा है। पहले अध्याय में वायुमंडल, जलवायु और वायविलय संबंधी जानकारी है। दूसरे में मौसम और प्रदूषक मापक आधुनिक उपकरणों का विवरण है। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्याय में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव, उनके नियंत्रण आदि की चर्चा है। छठे में क्लोरोफ्लूरो कार्बन के ओजोन परत पर पड़ रहे दुष्प्रभाव और उसकी प्रक्रिया को समझाया गया है। सातवें अध्याय में अम्ल वर्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, तथा आठवें में तापमान, वर्षा, पवनगति, सौर विकिरण एवं कृषि आदि पर निरंतर बढ़ती जा रही कार्बन डाइऑक्साइड एवं विरल गैसों के संभावित दुष्प्रभावों का विवेचन किया गया है। परिशिष्ट में दिए गए कुछ महत्वपूर्ण अध्ययन निष्कर्षो तथा प्रत्येक अध्याय में यथास्थान शामिल विभिन्न तालिकाओं और रेखाचित्रों ने इस पुस्तक की उपयोगिता में और बढ़ोतरी की है। कहना न होगा कि वर्तमान सभ्यता पर मंडराते सर्वाधिक घातक खतरे के प्रति आगाह करनेवाली यह कृति एक मूल्यवान वैज्ञानिक अध्ययन है।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha