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Pracheen bharat mein apradh aur dhand v.1987

By: Material type: TextTextPublication details: Kanpur Pragya prakeshan 1987Description: 279pISBN:
  • 8185075042
Subject(s): DDC classification:
  • H 364.954
Summary: प्रत्येक देश का विधि-विधान अपने युग की सभ्यता और संस्कृति का दर्पण होता है। किसी देश की सभ्यता का सही मूल्यांकन उस देश की दण्ड व्यवस्था से किया जा सकता है । प्राचीन भारतीय इतिहास के मूल स्रोतों पर आधृत यह अध्ययन तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों के आकलन में सहायक होगा । ग्रन्थ का उद्देश्य मुख्य रूप से प्राचीन भारत में प्रचलित विभिन्न अपराधों, उनके प्रति सामयिक दृष्टिकोणों तथा तत् सम्बन्धी दण्ड-विधानों का पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर वैज्ञानिक आधार पर विवेचन करना है अध्ययन मुख्य रूप से मनु, याज्ञ वल्क्य, विष्णु, नारद, वृहस्पति, कात्यान आदि की स्मृतियों, कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र तथा महाभारत पर आधारित है इसके अतिरिक्त धर्म सूत्रों, सम-सामयिक साहित्यिक रचनाओं, विदेशी यात्रियों के विवरण, अभिलेखों आदि का भी विवेचन किया गया है साथ ही विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं में प्रचलित दण्ड विधानों तथा आधुनिक भारतीय दण्ड विधान का भी यथा स्थान उल्लेख है । प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में दण्ड व्यवस्था का विशेष महत्व रहा है दण्ड विधान, दण्ड-नीति (राज्य व्यवस्था) और दण्ड-घर (राजा) प्राचीन शासन पद्धति के तीन मूल आधार हैं ग्रन्थ में इस सामाजिक विज्ञान का सम्यक विश्लेषण तथा इसकी अद्यतन सम-सामयिक उपयोगिता का आकलन करके आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन किया गया है ।
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प्रत्येक देश का विधि-विधान अपने युग की सभ्यता और संस्कृति का दर्पण होता है। किसी देश की सभ्यता का सही मूल्यांकन उस देश की दण्ड व्यवस्था से किया जा सकता है । प्राचीन भारतीय इतिहास के मूल स्रोतों पर आधृत यह अध्ययन तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों के आकलन में सहायक होगा ।

ग्रन्थ का उद्देश्य मुख्य रूप से प्राचीन भारत में प्रचलित विभिन्न अपराधों, उनके प्रति सामयिक दृष्टिकोणों तथा तत् सम्बन्धी दण्ड-विधानों का पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर वैज्ञानिक आधार पर विवेचन करना है अध्ययन मुख्य रूप से मनु, याज्ञ वल्क्य, विष्णु, नारद, वृहस्पति, कात्यान आदि की स्मृतियों, कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र तथा महाभारत पर आधारित है इसके अतिरिक्त धर्म सूत्रों, सम-सामयिक साहित्यिक रचनाओं, विदेशी यात्रियों के विवरण, अभिलेखों आदि का भी विवेचन किया गया है साथ ही विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं में प्रचलित दण्ड विधानों तथा आधुनिक भारतीय दण्ड विधान का भी यथा स्थान उल्लेख है ।

प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में दण्ड व्यवस्था का विशेष महत्व रहा है दण्ड विधान, दण्ड-नीति (राज्य व्यवस्था) और दण्ड-घर (राजा) प्राचीन शासन पद्धति के तीन मूल आधार हैं ग्रन्थ में इस सामाजिक विज्ञान का सम्यक विश्लेषण तथा इसकी अद्यतन सम-सामयिक उपयोगिता का आकलन करके आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन किया गया है ।

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