Amazon cover image
Image from Amazon.com
Image from Google Jackets

Tumhari jay

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Prabhat Prakashan 2019Description: 176ISBN:
  • 9789353221935
Subject(s): DDC classification:
  • H 954 SHU
Summary: सृष्टिकर्ता की तरह साहित्यकार भी अपने अपने ढंग से अपने देश, उसकी संस्कृति, परंपरा और इतिहास को व्याख्यायित करता है, नई स्थापनाएँ देता है। जैसे गंगा में कई नदियों का पानी, अनेक पर्वतों की मिट्टी और औषधीय तत्त्व मिलकर उसे उर्वरता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार साहित्य को भी अनेक विधाएँ समृद्ध करती हैं। आशुतोष शुक्ल प्रयोगधर्मी लेखक हैं, जिन्होंने एक नई 'संभाषी' विधा से साहित्य को समृद्ध किया है। उनके शब्द लगातार पाठकों से बतियाते रहते हैं। सहजै सहज समाना की तरह वह अपनी शैली में सिद्धहस्त हैं। कम शब्दों में कही गई उनकी बात पानी की बूँद की तरह फैलती जाती है और फैलकर पूरी नदी बन जाती है। छोटे-छोटे वाक्यों में गुरुत्वाकर्षण सा बल है। उनकी संभाषी विधा साहित्य में नया गवाक्ष खोलती है जहाँ से 'तुम्हारी जय' का आख्यान साफ-साफ देखा जा सकता है। 'तुम्हारी जय' उन छोटी-छोटी बातों की बात करती है जो सदियों से भारतवासियों को गढ़ रही हैं। 'तुम्हारी जय' अनुपम और संग्रहणीय कृति है और भारत के इतिहास और समाज को देखने का नया दर्पण भी।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gandhi Smriti Library H 954 SHU (Browse shelf(Opens below)) Available 167433
Total holds: 0

सृष्टिकर्ता की तरह साहित्यकार भी अपने अपने ढंग से अपने देश, उसकी संस्कृति, परंपरा और इतिहास को व्याख्यायित करता है, नई स्थापनाएँ देता है। जैसे गंगा में कई नदियों का पानी, अनेक पर्वतों की मिट्टी और औषधीय तत्त्व मिलकर उसे उर्वरता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार साहित्य को भी अनेक विधाएँ समृद्ध करती हैं। आशुतोष शुक्ल प्रयोगधर्मी लेखक हैं, जिन्होंने एक नई 'संभाषी' विधा से साहित्य को समृद्ध किया है। उनके शब्द लगातार पाठकों से बतियाते रहते हैं। सहजै सहज समाना की तरह वह अपनी शैली में सिद्धहस्त हैं। कम शब्दों में कही गई उनकी बात पानी की बूँद की तरह फैलती जाती है और फैलकर पूरी नदी बन जाती है। छोटे-छोटे वाक्यों में गुरुत्वाकर्षण सा बल है। उनकी संभाषी विधा साहित्य में नया गवाक्ष खोलती है जहाँ से 'तुम्हारी जय' का आख्यान साफ-साफ देखा जा सकता है। 'तुम्हारी जय' उन छोटी-छोटी बातों की बात करती है जो सदियों से भारतवासियों को गढ़ रही हैं। 'तुम्हारी जय' अनुपम और संग्रहणीय कृति है और भारत के इतिहास और समाज को देखने का नया दर्पण भी।

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha