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Nirala ke sahitya mein pragatisheelata ke aayam

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Shivank Prakashan 2022Edition: 1st edDescription: 186 pISBN:
  • 9789383980116
Subject(s): DDC classification:
  • H 891.43 SHR
Summary: कुछ लोग मानते हैं कि प्रगतिवाद का उदय छायावाद की प्रतिक्रिया में हुआ था। नगर यह सही नहीं है। प्रगतिवाद का उदय छायावाद के समांतर हुआ था, उसके विरोध में नहीं बल्कि अयावाद के भीतर से ही प्रगतिवाद के अंखाए फूटे थे। पंत की परवर्ती और निराला की अनेक कविताएं इसका प्रमाण है। कुछ लोग प्रगतिवाद का प्रस्थान निराला की कविताओं से मानते है, तो कुछ इसकी छाया पंत की परवर्ती कविताओं- ग्राम्या जैसे संग्रहों से ही देखने लगते है। दरअसल, प्रगतिशील क चेतना है, जो समय की स्थितियों के अनुसार विकसित हुई। दूसरे महायुद्ध के बाद दुनिया के औपनिवेशिक मुल्कों में औद्योगीकरण और बाजार के विस्तार कोड शुरू हुई, उससे न सिर्फ मानव श्रम का शोषण शुरू हुआ, बल्कि आधुनिकीकरण थोपने के दुश्चक्रों के चलते मानव-जीवन की नैसर्गिक स्थितयों में भी तेजी से बदलाव दिखाई देने लगा। वैयक्तिकता को प्रव मिला। ऐसी स्थिति में कोमलकांत पदावली की रचनाओं को स्वाभाविक रूप से प्रति किया जाने लगा, उन्हें संदेह की नजर से देखा जाने लगा। विद्रोह का स्वर अधिक आकर्षित करने लगा। इन्ही परिस्थितियो नेता की कविताएं एवं थी। निराला में वह स्वर अधिक मुखर रूप में उभरा। इसलिए तर लोग हिंदी में वेतन के • उभार की सीमारेखा निराला से खीचना शुरू करते। हैं। जया श्रीवास्तवने प्रगतिशील चेतना के विकास केक विवेचन करते हुए, उनके पूरवर्ती कवियों से लेकर निराला के समय की स्थितियों तक का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कई बार चकित होना पड़ता है कि आज जब शोध की स्थितियों पर बातें करते हुए असर रोकिय जाता है कि शोध में आवश्यक श्रम नहीं किया जा रहा है यह किताब उसका प्रतिकार करती है। निराला की प्रगतिशील चेतना को समझने के लिए जितने भी जरूरी उपकरण हो सकते हैं, सैद्धांतिक उपादान हो सकते है, जया श्रीवास्तव ने वह सब इस पुस्तक में इस्तेमाल किया है। निस्संदेह यह पुस्तक निराला को समझने में बहुत उपयोगी है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 891.43 SHR (Browse shelf(Opens below)) Available 168513
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कुछ लोग मानते हैं कि प्रगतिवाद का उदय छायावाद की प्रतिक्रिया में हुआ था। नगर यह सही नहीं है। प्रगतिवाद का उदय छायावाद के समांतर हुआ था, उसके विरोध में नहीं बल्कि अयावाद के भीतर से ही प्रगतिवाद के अंखाए फूटे थे। पंत की परवर्ती और निराला की अनेक कविताएं इसका प्रमाण है। कुछ लोग प्रगतिवाद का प्रस्थान निराला की कविताओं से मानते है, तो कुछ इसकी छाया पंत की परवर्ती कविताओं- ग्राम्या जैसे संग्रहों से ही देखने लगते है। दरअसल, प्रगतिशील क चेतना है, जो समय की स्थितियों के अनुसार विकसित हुई। दूसरे महायुद्ध के बाद दुनिया के औपनिवेशिक मुल्कों में औद्योगीकरण और बाजार के विस्तार कोड शुरू हुई, उससे न सिर्फ मानव श्रम का शोषण शुरू हुआ, बल्कि आधुनिकीकरण थोपने के दुश्चक्रों के चलते मानव-जीवन की नैसर्गिक स्थितयों में भी तेजी से बदलाव दिखाई देने लगा। वैयक्तिकता को प्रव मिला। ऐसी स्थिति में कोमलकांत पदावली की रचनाओं को स्वाभाविक रूप से प्रति किया जाने लगा, उन्हें संदेह की नजर से देखा जाने लगा। विद्रोह का स्वर अधिक आकर्षित करने लगा। इन्ही परिस्थितियो नेता की कविताएं एवं थी। निराला में वह स्वर अधिक मुखर रूप में उभरा। इसलिए तर लोग हिंदी में वेतन के • उभार की सीमारेखा निराला से खीचना शुरू करते। हैं। जया श्रीवास्तवने प्रगतिशील चेतना के विकास केक विवेचन करते हुए, उनके पूरवर्ती कवियों से लेकर निराला के समय की स्थितियों तक का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कई बार चकित होना पड़ता है कि आज जब शोध की स्थितियों पर बातें करते हुए असर रोकिय जाता है कि शोध में आवश्यक श्रम नहीं किया जा रहा है यह किताब उसका प्रतिकार करती है। निराला की प्रगतिशील चेतना को समझने के लिए जितने भी जरूरी उपकरण हो सकते हैं, सैद्धांतिक उपादान हो सकते है, जया श्रीवास्तव ने वह सब इस पुस्तक में इस्तेमाल किया है। निस्संदेह यह पुस्तक निराला को समझने में बहुत उपयोगी है।

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