Rajbhasha avam anuprayog
Material type:
- 9789390973545
- H 491.43 SHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.43 SHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168162 |
गा के नीर की तरह सब कुछ समेटती हुई सदियों से भारत के लोक-वर्ग में बहती चली आ रही है। भारतीय जनमानस में औपनिवेशिक मानसिकता की वजह से अँग्रेजी को बौद्धिकता का पर्याय माना गया, साथ ही कुछ हद तक बौद्धिक ईमानदारी का भी। जनतन्त्र को मजबूत और निरन्तर बनाये रखने में भाषा की भूमिका को कोई नकार तो नहीं सकता। हिन्दी आज विश्व की तीन बड़ी भाषाओं में से एक है। सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग करना हमारा संवैधानिक दायित्व है और इस दायित्व की पूर्ति हमारी निष्ठा पर निर्भर करती है। राजभाषा स्वीकारने का मुख्य उद्देश्य है कि जनता का काम जनता की भाषा में सम्पन्न हो। प्रशासन की भाषा एक अलग तरह की भाषा होती है जो सीधे विषय पर बात करती है। व्याकरण-सम्मत होने के कारण यह मानक भाषा है। हिन्दी ध्वन्यात्मक भाषा है, जहाँ अँग्रेजी के उच्चारण के लिए भी शब्दकोश देखने की आवश्यकता पड़ती है वहीं हिन्दी के लिए सिर्फ अर्थ देखने के लिए ही शब्दकोश की जरूरत होती है। अँग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग याद करनी पड़ती है, जबकि हिन्दी के शब्दों की वर्णमाला– स्वर व व्यंजन तथा बारह खड़ी को हृदयंगम कर लेने से हिन्दी के किसी भी शब्द को पढ़ना-लिखना सहज हो जाता है। यही कारण है कि हिन्दी में किसी भी भाषा को लिखना या उसका उच्चारण करना सरल होता है।
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