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Samntwaad ewam kisan sangrash

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur Pointer publisher 1992Description: 172 pISBN:
  • 8171320430
Subject(s): DDC classification:
  • H 361 SHA
Summary: पिछले दो दशकों के दौरान किसान संघर्षों का अध्ययन आधुनिक भारत के सामाजिक-प्रर्थिक इतिहास के अध्येताओं का श्राकर्षण बिन्दु बन गया है। 1960 के बाद के राष्ट्रीय आंदोलन के लेखनों में भी किसान आंदोलनों के अध्ययन को पर्याप्त महत्व दिया गया है। तथा राष्ट्रीय आंदोलन एवं भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में किसानों की स्वतंत्र भूमिका तथा पहचान स्थापित हुयी है यह पुस्तक राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के किसान संघर्ष को आधार बनाकर लिखी गयी है। राजस्थान के संदर्भ में अभी तक यह अवधारणा बनी हुयी है कि राजस्थान में किसान आंदोलन लगभग नहीं थे। किन्तु ज्यों-ज्यों राजस्थान के किसान आंदोलनों के विभिन्न तथ्य सामने आ रहे हैं, यह अवधारणा टूटने लगी है । इस पुस्तक में राजस्थान के किसान संघर्षो के अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया गया है । साम्राज्यवाद का प्राधार सामंतवाद रहा है। जहाँ अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने ब्रिटिश भारत के भू-भागों में नयी सामंती व्यवस्था को बन्म दिया था वहीं देशी रियासतों में मध्यकालीन सामंती व्यवस्था को साधारण परिवर्तनों के साथ सुरक्षित रखा जिसने अंग्रेजी साम्राज्य को सामाजिक आधार प्रस्तुत किया । देशी रियासतों की जनता का सामंत विरोधी संघर्ष स्वाभाविक तौर पर साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष का अंग था। वर्तमान पुस्तक में इस स्थिति को तथ्यों सहित स्पष्ट करने का प्रयास किया है। शेखावाटी के किसान संघर्ष को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयास किया है। इस का काल 1920 1950 राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक उतार चढाव, परिवर्तनों एवं घटनाओं को समेटे हुऐ था। यतः स्वाभाविक रूप से इन सब का प्रभाव स्थानीय स्वरों पर भी पड़ा जिसका विवरण एवं विश्लेषण इस पुस्तक में दिया गया है। वर्तमान पुस्तक मुख्यतः पुरालेखीय सामग्री पर प्रचारित है। तत्कालीन प्रकाशित सामग्री का भी समावेश किया गया है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 361 SHA (Browse shelf(Opens below)) Available 56480
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पिछले दो दशकों के दौरान किसान संघर्षों का अध्ययन आधुनिक भारत के सामाजिक-प्रर्थिक इतिहास के अध्येताओं का श्राकर्षण बिन्दु बन गया है। 1960 के बाद के राष्ट्रीय आंदोलन के लेखनों में भी किसान आंदोलनों के अध्ययन को पर्याप्त महत्व दिया गया है। तथा राष्ट्रीय आंदोलन एवं भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में किसानों की स्वतंत्र भूमिका तथा पहचान स्थापित हुयी है

यह पुस्तक राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के किसान संघर्ष को आधार बनाकर लिखी गयी है। राजस्थान के संदर्भ में अभी तक यह अवधारणा बनी हुयी है कि राजस्थान में किसान आंदोलन लगभग नहीं थे। किन्तु ज्यों-ज्यों राजस्थान के किसान आंदोलनों के विभिन्न तथ्य सामने आ रहे हैं, यह अवधारणा टूटने लगी है । इस पुस्तक में राजस्थान के किसान संघर्षो के अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया गया है ।

साम्राज्यवाद का प्राधार सामंतवाद रहा है। जहाँ अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने ब्रिटिश भारत के भू-भागों में नयी सामंती व्यवस्था को बन्म दिया था वहीं देशी रियासतों में मध्यकालीन सामंती व्यवस्था को साधारण परिवर्तनों के साथ सुरक्षित रखा जिसने अंग्रेजी साम्राज्य को सामाजिक आधार प्रस्तुत किया । देशी रियासतों की जनता का सामंत विरोधी संघर्ष स्वाभाविक तौर पर साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष का अंग था। वर्तमान पुस्तक में इस स्थिति को तथ्यों सहित स्पष्ट करने का प्रयास किया है। शेखावाटी के किसान संघर्ष को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयास किया है। इस का काल 1920 1950 राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक उतार चढाव, परिवर्तनों एवं घटनाओं को समेटे हुऐ था। यतः स्वाभाविक रूप से इन सब का प्रभाव स्थानीय स्वरों पर भी पड़ा जिसका विवरण एवं विश्लेषण इस

पुस्तक में दिया गया है। वर्तमान पुस्तक मुख्यतः पुरालेखीय सामग्री पर प्रचारित है। तत्कालीन प्रकाशित सामग्री का भी समावेश किया गया है।

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