Raibaar: garhwali poems
Material type:
- 9788186810374
- UK 891.4301 SEM
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | UK 891.4301 SEM (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168389 |
मनखि जख-जख जान्दु वेकि भाषा भी वेका दगड़ा तखि-तखि पाँछ जान्दि। पर भाषा को मोल वी पच्छयाण सकदन, जु भाषा कि गैराइ तैं बिंगदा छन्। भाषा धरति कि समळौण छ। जु भाषा कि ई शक्ति तैं बींग जान्दन,उ भाषा का शब्द तैं बटोळनै कोशिस करदन। टिहरी का रैवासी अर अब सात समोदर पार, जापान कि धरति मा रैण वळा प्रभात सेमवाल इना कवि छन, जॉन अपणि भाषा कि ताकत पच्छ्रयाणि अर कवितों का जरिया अपणि गढ़वाळि भाषा का शब्द तें टटोळने अर बटोळने कोशिस करि। 'रैबार' कि कविताँ पढ़ीकि लगदु कि प्रभात सेमवाल मयाळु मनखि छन। भाव अर भाषा का देखणन ये मयाळा कवि कि इ कविता मन मा भारी किस्वाळि लगे जान्दन।
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