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Raibaar: garhwali poems

By: Material type: TextTextPublication details: Dehradun Samay sakshay 2015Description: 100 pISBN:
  • 9788186810374
Subject(s): DDC classification:
  • UK 891.4301 SEM
Summary: मनखि जख-जख जान्दु वेकि भाषा भी वेका दगड़ा तखि-तखि पाँछ जान्दि। पर भाषा को मोल वी पच्छयाण सकदन, जु भाषा कि गैराइ तैं बिंगदा छन्। भाषा धरति कि समळौण छ। जु भाषा कि ई शक्ति तैं बींग जान्दन,उ भाषा का शब्द तैं बटोळनै कोशिस करदन। टिहरी का रैवासी अर अब सात समोदर पार, जापान कि धरति मा रैण वळा प्रभात सेमवाल इना कवि छन, जॉन अपणि भाषा कि ताकत पच्छ्रयाणि अर कवितों का जरिया अपणि गढ़वाळि भाषा का शब्द तें टटोळने अर बटोळने कोशिस करि। 'रैबार' कि कविताँ पढ़ीकि लगदु कि प्रभात सेमवाल मयाळु मनखि छन। भाव अर भाषा का देखणन ये मयाळा कवि कि इ कविता मन मा भारी किस्वाळि लगे जान्दन।
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मनखि जख-जख जान्दु वेकि भाषा भी वेका दगड़ा तखि-तखि पाँछ जान्दि। पर भाषा को मोल वी पच्छयाण सकदन, जु भाषा कि गैराइ तैं बिंगदा छन्। भाषा धरति कि समळौण छ। जु भाषा कि ई शक्ति तैं बींग जान्दन,उ भाषा का शब्द तैं बटोळनै कोशिस करदन। टिहरी का रैवासी अर अब सात समोदर पार, जापान कि धरति मा रैण वळा प्रभात सेमवाल इना कवि छन, जॉन अपणि भाषा कि ताकत पच्छ्रयाणि अर कवितों का जरिया अपणि गढ़वाळि भाषा का शब्द तें टटोळने अर बटोळने कोशिस करि। 'रैबार' कि कविताँ पढ़ीकि लगदु कि प्रभात सेमवाल मयाळु मनखि छन। भाव अर भाषा का देखणन ये मयाळा कवि कि इ कविता मन मा भारी किस्वाळि लगे जान्दन।

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