Samudayikta ka aadhar:ek anushlan v.1994
Material type:
- 8170553237
- H 304.28 RAI
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 304.28 ��� ��;RAI (Browse shelf(Opens below)) | Available | 65158 |
व्यक्ति के अस्तित्व के दो प्रमुख पक्ष हैं : निजी और सार्वजनिक । जहाँ निजी पक्ष व्यक्ति की सामान्य आवश्यकताओं, आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति से सम्बद्ध है, वहाँ उसका सार्वजनिक पक्ष सामुदायिक जीवन की सुरक्षा, सुव्यवस्था के प्रति उत्तरदायी है । जहाँ निजी पक्ष का प्रेरक तत्व स्वातन्त्र्य है, वहाँ सामु दायिक जीवन का आधार व्यवस्था है । जब स्वातन्त्र्य का उद्देश्य एकान्तरूप से या प्रमुख रूप से स्वहित-साधन हो जाता है, तो व्यवस्था के कारण का खतरा पैदा हो जाता है। इसके कारण जब स्वातन्त्र्य और व्यवस्था में, व्यक्ति के अस्तित्व के निजी और सार्वजनिक पक्षों में, सामञ्जस्य का अभाव हो जाता है, तो सामाजिक जीवन कलह पूर्ण होकर अव्यवस्थित हो जाता है। इसके साथ ही वैयक्तिक जीवन भी अशान्त और दुखमय हो जाता है ।
अत: प्रत्येक संगठित समाज के सामने यह प्रश्न हमेशा रहा है : व्यक्ति के अस्तित्व के निजी और सार्वजनिक पक्षों में किस तरह सामञ्जस्य बना रह सकता है ? इसी प्रश्न के समीचीन उत्तर का संधान ही इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है । इस प्रश्न के उत्तर के लिए इसके तीन आयामों और इनके पार स्परिक सम्बन्धों का अन्वेषण और विश्लेषण आव श्यक है। ये आयाम हैं : स्वहित-साधन की प्रवृत्ति, ज्ञान और कर्म । इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि किस तरह का ज्ञान स्वहित-साधन की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा कर ऐसे कर्म को उत्प्रेरित प्रभावित कर सकने में सक्षम है जिससे निजी और सार्वजनिक जीवन में सामञ्जस्य स्थापित हो सके ।
सभ्यता के आरम्भ से ही देश-विदेश के बहुत सारे चिन्तक इन प्रश्नों से जूझते रहे हैं और इनके सभी चीन उत्तर ढूंढ़ने में प्रयासरत रहे हैं। परन्तु पाश्चात्य चिन्तनधारा और पारम्परिक भारतीय चिन्तन धारा में इन प्रश्नों पर अलग दृष्टिकोण से विचार किया गया है; इसलिए इनके उत्तर भी अलग-अलग रूप से दिए गए हैं। इस पुस्तक में इन्ही उत्तरों का सविस्तार विवेचन किया गया है। इस विषय में पाश्चात्यन्तिकों में प्लेटो, अरस्तु, मैक्स काम आरंट आदि प्रमुख चिन्तको बेवर केविन-विश्लेषण की समीक्षा करते हुए, भारू ती चिन की पर इस पुस्तक पर प्रकाश डाला गया है।
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