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Bhartiya prachin lipimala

By: Material type: TextTextPublication details: Delhi Khama 2018Description: 494 pISBN:
  • 9788185495972
Subject(s): DDC classification:
  • H 130.17 OJH
Summary: वर्तमान तक पहुंची लिपियों की मूललिपि क्या और कैसी रही होगी, लिपि की यात्रा कब और कहां से आरंभ हुई, ऐसे कई सवाल हैं जिनको लेकर भाषाविदों, पुराविदों और लिपि चिंतकों में विगत लगभग डेढ़ सदी से तर्क-वितर्क रहे हैं। किंतु, लिपि किसी विरासत से कम नहीं, यह संजीवनी है और बीजरूप में मानव व्यवहार के साथ संपृक्त रही है। भाषा तो किसी भी जीव जगत की हो सकती है किंतु लिपि मानव व्यवहार की प्रतीक है। यह भाषा के प्रत्यक्षीकरण का स्वरूप और प्रतीक चिह्न है। जो हमारी अभिव्यक्ति का सरल साधन भी है। प्रस्तुत पुस्तक में सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक लिपियों का विस्तार से विकास और परिवर्तन दर्शाया गया है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 130.17 OJH (Browse shelf(Opens below)) Available 168145
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वर्तमान तक पहुंची लिपियों की मूललिपि क्या और कैसी रही होगी, लिपि की यात्रा कब और कहां से आरंभ हुई, ऐसे कई सवाल हैं जिनको लेकर भाषाविदों, पुराविदों और लिपि चिंतकों में विगत लगभग डेढ़ सदी से तर्क-वितर्क रहे हैं। किंतु, लिपि किसी विरासत से कम नहीं, यह संजीवनी है और बीजरूप में मानव व्यवहार के साथ संपृक्त रही है। भाषा तो किसी भी जीव जगत की हो सकती है किंतु लिपि मानव व्यवहार की प्रतीक है। यह भाषा के प्रत्यक्षीकरण का स्वरूप और प्रतीक चिह्न है। जो हमारी अभिव्यक्ति का सरल साधन भी है।

प्रस्तुत पुस्तक में सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक लिपियों का विस्तार से विकास और परिवर्तन दर्शाया गया है।

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