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Jugesar

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Shivank 2013Description: 97 pISBN:
  • 9789380801902
DDC classification:
  • H KUM H
Summary: इस उपन्यास में प्रेम का द्वंद्व, अंतरजातीय विवाह की समस्या, शिक्षा जगत और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि समस्याओं को बखूबी उठाया गया है जो उपन्यास को उपन्यास नहीं रहने देते बल्कि समाज के मौजूदा स्वरूप पर सार्थक टिप्पणी बन जाते हैं। प्रेम का एक-एक दृश्य इतना जीवन्त है कि पढ़ते समय पाठक के सामने दृश्य उपस्थित करने में समर्थ हैं। हरेन्द्र जी की लेखन शैली इतनी सादगीपूर्ण ओर भाषा इतनी सरल सहज और प्रवाहपूर्ण है कि कहीं से भी साहित्यिकता का आतंक नहीं होता बल्कि रोचकता, सरलता और आगे क्या हुआ जानने की जिज्ञासा अंत तक बनी रहती है। -डॉ. अभिज्ञात उपन्यास में दलित विमर्श और स्त्री विमर्श के प्रगतिशील तत्वों का समावेश करके लेखक ने अपनी सुगढ़ दृष्टिसम्पकता का परिचय दिया है। घटनाक्रम इतनी तेज़ रफ्तार से बदलते हैं कि पढ़ने वाला चकित रह जाता है। भाषा बहते पानी की तरह प्रवाहमान है और पढ़ने वाला उसके साथ ही बहता चला जाता है। उपन्यासकार ने वर्णनात्मक शैली का उपयोग किया है। उपन्यास हिंदी दैनिक सन्मार्ग के कोलकाता संस्करण में अड़तीस किस्तों में धारावाहिक के रूप में छप चुका है, पाठकों की उम्मीद पर खरा उतरा है। अतः इसकी पठनीयता असंदिग्ध है।
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इस उपन्यास में प्रेम का द्वंद्व, अंतरजातीय विवाह की समस्या, शिक्षा जगत और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि समस्याओं को बखूबी उठाया गया है जो उपन्यास को उपन्यास नहीं रहने देते बल्कि समाज के मौजूदा स्वरूप पर सार्थक टिप्पणी बन जाते हैं। प्रेम का एक-एक दृश्य इतना जीवन्त है कि पढ़ते समय पाठक के सामने दृश्य उपस्थित करने में समर्थ हैं। हरेन्द्र जी की लेखन शैली इतनी सादगीपूर्ण ओर भाषा इतनी सरल सहज और प्रवाहपूर्ण है कि कहीं से भी साहित्यिकता का आतंक नहीं होता बल्कि रोचकता, सरलता और आगे क्या हुआ जानने की जिज्ञासा अंत तक बनी रहती है।

-डॉ. अभिज्ञात

उपन्यास में दलित विमर्श और स्त्री विमर्श के प्रगतिशील तत्वों का समावेश करके लेखक ने अपनी सुगढ़ दृष्टिसम्पकता का परिचय दिया है। घटनाक्रम इतनी तेज़ रफ्तार से बदलते हैं कि पढ़ने वाला चकित रह जाता है। भाषा बहते पानी की तरह प्रवाहमान है और पढ़ने वाला उसके साथ ही बहता चला जाता है। उपन्यासकार ने वर्णनात्मक शैली का उपयोग किया है।

उपन्यास हिंदी दैनिक सन्मार्ग के कोलकाता संस्करण में अड़तीस किस्तों में धारावाहिक के रूप में छप चुका है, पाठकों की उम्मीद पर खरा उतरा है। अतः इसकी पठनीयता असंदिग्ध है।

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