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Hasie ulannghati aurata : pravasi kahaniyam

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Delhi Swaraj prakeshan 2018.Description: 344 pISBN:
  • 9789383515035
Subject(s): DDC classification:
  • H HAS
Summary: प्रवासी खण्ड में तीन पीढ़ियों के दृष्टिकोण और मानसिकता की कहानियाँ है। पहली कहानियाँ ऐसी लेखिकाओं की हैं, जो रहती तो विदेश में हैं पर उन पर भारतीय मानसिकता की जकड़ ढीली नहीं हुई। वे नए आयाम में, नए मूल्यों के रू-ब-रू तो हैं उनके प्रति आकर्षित भी है पर दुविधा में हैं। उन्हें मुक्ति का अर्थ तो मालूम हो चुका है पर ये अभी या तो उसे अपनाने के लिए हिम्मत जुटाने की प्रक्रिया में है या दुविधा ग्रस्त इसे दुविधा-ग्रस्त पीढ़ी कहा जा सकता है। दूसरी थे, जो पहनाये और रहन-सहन तो नए परिवेश के अनुरूप बदल चुकी हैं, पति के अतिरिक्त दूसरे पुरुषों से संपर्क में आने पर उनके प्रति आकर्षित भी होती हैं पर वे अभी भी दुविधा और अपराध-बोध से ग्रस्त या अभी भी नये-पुराने संस्कारों के बीच झूल रही है। यानी कि दोनों मूल्यों की ऊहापोह में आवाजाही करती रहती है यह नये पुराने संस्कारों के बीच झूलती पीढ़ी पहली और दूसरी पीढ़ी कहीं-कहीं ओवरलैप भी करती है। ये अर्ध-मुक्त पीढ़ी है। तीसरी पीढ़ी वाली लेखिकाएं वहीं पैदा हुई है। वहीं विदेशी तौर-तरीके से शिक्षित हुई हैं और वे उसी जीवनशैली को अपना चुकी हैं। यह पौड़ी भारतीय परंपराओं, विवाह या परिवार की संस्कृति को नकारती है। यह पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी यानी माँ-बाप के नियंत्रण से बाहर, स्वतंत्र जीवन जीने की हिम्मत और हौसला रखती है। यह मुक्त पीढ़ी है।
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प्रवासी खण्ड में तीन पीढ़ियों के दृष्टिकोण और मानसिकता की कहानियाँ है। पहली कहानियाँ ऐसी लेखिकाओं की हैं, जो रहती तो विदेश में हैं पर उन पर भारतीय मानसिकता की जकड़ ढीली नहीं हुई। वे नए आयाम में, नए मूल्यों के रू-ब-रू तो हैं उनके प्रति आकर्षित भी है पर दुविधा में हैं। उन्हें मुक्ति का अर्थ तो मालूम हो चुका है पर ये अभी या तो उसे अपनाने के लिए हिम्मत जुटाने की प्रक्रिया में है या दुविधा ग्रस्त इसे दुविधा-ग्रस्त पीढ़ी कहा जा सकता है।

दूसरी थे, जो पहनाये और रहन-सहन तो नए परिवेश के अनुरूप बदल चुकी हैं, पति के अतिरिक्त दूसरे पुरुषों से संपर्क में आने पर उनके प्रति आकर्षित भी होती हैं पर वे अभी भी दुविधा और अपराध-बोध से ग्रस्त या अभी भी नये-पुराने संस्कारों के बीच झूल रही है। यानी कि दोनों मूल्यों की ऊहापोह में आवाजाही करती रहती है यह नये पुराने संस्कारों के बीच झूलती पीढ़ी पहली और दूसरी पीढ़ी कहीं-कहीं ओवरलैप भी करती है। ये अर्ध-मुक्त पीढ़ी है। तीसरी पीढ़ी वाली लेखिकाएं वहीं पैदा हुई है। वहीं विदेशी तौर-तरीके से शिक्षित हुई हैं और वे उसी जीवनशैली को अपना चुकी हैं। यह पौड़ी भारतीय परंपराओं, विवाह या परिवार की संस्कृति को नकारती है। यह पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी यानी माँ-बाप के नियंत्रण से बाहर, स्वतंत्र जीवन जीने की हिम्मत और हौसला रखती है। यह मुक्त पीढ़ी है।

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