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Bhasha-vigyan evam bhasha shastra

By: Material type: TextTextPublication details: Varansi; Visvavidhyalay; 1986Edition: 2nd edDescription: 552 pDDC classification:
  • H 410 DWI
Summary: इस ग्रन्थ में प्रयत्न किया गया है कि भाषा-विज्ञान और भाषाशास्त्र का कोई भी महत्वपूर्ण विषय छूटने न पावे। ग्रन्थ के आकार की विशालता के परिहा राम उपयोगी विषय एवं विवरण छोड़ने पड़े हैं या अत्यंत संक्षेप में देने पड़े है। तदर्थ लेखक क्षम्य है. प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्वनिविज्ञान (Phonetics) और स्वनिम-विज्ञान ( Phonemics) विषय पर विशेष महत्त्वपूर्ण सामग्री दी गई है। स्व-निर्मित श्लोकों के द्वारा पारिभाषिक शब्दों आदि की व्याख्या की गई है। इनसे विषय सरलता से स्मरण हो सकेगा। जर्मन, फ्रेंच, चीनी, अरबी आदि भाषाओंों के विषय में पर्याप्त उपयोगी सामग्री दी गई है। संस्कृत के प्रामाणिक ग्रन्थों से यथास्थान उपयुक्त उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं। इस ग्रन्थ में लेखक का उद्देश्य है- सरलता, संक्षेप और प्रामाणिकता मल्लिनाथ के शब्दों में कह सकते हैं- नामूलं लिख्यते किचिद्, नानपेक्षितमुच्यते ।
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इस ग्रन्थ में प्रयत्न किया गया है कि भाषा-विज्ञान और भाषाशास्त्र का कोई भी महत्वपूर्ण विषय छूटने न पावे। ग्रन्थ के आकार की विशालता के परिहा राम उपयोगी विषय एवं विवरण छोड़ने पड़े हैं या अत्यंत संक्षेप में देने पड़े है। तदर्थ लेखक क्षम्य है.
प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्वनिविज्ञान (Phonetics) और स्वनिम-विज्ञान ( Phonemics) विषय पर विशेष महत्त्वपूर्ण सामग्री दी गई है। स्व-निर्मित श्लोकों के द्वारा पारिभाषिक शब्दों आदि की व्याख्या की गई है। इनसे विषय सरलता से स्मरण हो सकेगा। जर्मन, फ्रेंच, चीनी, अरबी आदि भाषाओंों के विषय में पर्याप्त उपयोगी सामग्री दी गई है। संस्कृत के प्रामाणिक ग्रन्थों से यथास्थान उपयुक्त उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं। इस ग्रन्थ में लेखक का उद्देश्य है- सरलता, संक्षेप और प्रामाणिकता मल्लिनाथ के शब्दों में कह सकते हैं-
नामूलं लिख्यते किचिद्, नानपेक्षितमुच्यते ।

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