Shiksha Koustubha
Material type:
- 9789388107464
- H 370.114 KAP
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 370.114 KAP (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168260 |
शिक्षा का जुड़ाव सीधे सीधे संस्कृति से होता है अर्थात् मानव संस्कृति से। जब इसका सरोकार इससे छूट जाता है तो यह निरर्थक हो जाती है। शिक्षा अन्ततोगत्वा मानव समाज के लिए है। शिक्षा के सरोकारों और सामाजिक सरोकारों में कोई मूलभूत अन्तर नहीं रहना चाहिए, अन्यथा पिछड़ेपन की स्थिति से दो-चार होना होगा। शिक्षा, संस्कृति और समाज में गत्यात्मकता का एक रिश्ता जुड़ा रहे, एतदर्थ जरूरी है कि एक सुविचारित मूल्यपरक विधान की रचना की जाए। इसके अन्तर्गत कालजयी विचारों का संग्रहण करते हुए मानव सभ्यता और संस्कृति को नई दिशा देने का प्रयत्न निरन्तर रूप से होते रहना जरूरी है।
शिक्षा का स्वरूप स्वायत्त और मर्यादित रहे, तो ही श्रेयष्कर अन्यथा शिक्षा सत्ता पक्ष की पिछलग्गु बन कर रह जाएगी। इससे निरन्तर विकारों का अबाध गति से आवागमन होता रहेगा।
वही शिक्षा श्रेष्ठ है जिसके आधार स्वावलम्बन के सूत्रों से निर्मित हों, आध्यात्म के सूत्रों से पोषित और भावनाओं के सूत्रों से सींचित हो । शिक्षा के मूलाधार ऐसे हों कि जो हमें कदपि परजीवि न बनाए। बल्कि हमें स्वतन्त्र जीवि बनाए और इस योग्य बनाए कि हम अपने लिए भरण-पोषण की स्वयं व्यवस्था कर सकें। एतदर्थ शिक्षा में नए कार्यक्रमों को सम्मिलित करने के प्रयासों को बल दिया जाए। नई प्राद्योगिकी व तकनीकों को सम्मिलित किया जाए ताकि संस्कृति, एक अन्वेषी की भावना से अग्रिम अग्रसर हो सके ताकि नए क्षितिजों का विस्तार हो सके और नए भविष्य को न्यौता दिया जा सके।
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