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Pryawaran prdushan aur ikkesveen sadee v.1992

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi; Taxashila Prakashan; 1992Description: 126pDDC classification:
  • H 363.73 BIS
Summary: आज प्रायः कहा जाता हैं कि हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे हैं । हम इसे कुछ ऐसे लहजे में कहते हैं जैसे इक्कीसवीं सदी अपने द्वार पर बन्दनवार तोरण लगाकर हमारे स्वागत के लिए खड़ी है। हमें द्वार लांघना मात्र है और हम सपनों की दुनिया में पहुंच जाएंगे किन्तु सचाई यह है कि आने वाली सदी में हमें कांटों पर चलना पड़ सकता हैं । हम पर्यावरण का विनाश कर चुके हैं । वह विषाक्त हो चला गया है हमारे ऊर्जा के स्रोत, वन, जल, खनिज, भूमि की उत्पादन क्षमता समाप्त होती जा रही है दूसरी ओर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है । अगर हमने उपाय नहीं किए तो हमारी दुर्गति अवश्यं भावी है । यह पुस्तक भविष्य की उसी चिन्ता को ध्यान में रखकर लिखी गई है किन्तु आशा की किरण भी है अगर उपाय किए जाएं तो नई सदी को हम सँवार भी सकते हैं पुस्तक में इस आशा को भी जगाया गया है ।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 363.73 (Browse shelf(Opens below)) Available 56869
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आज प्रायः कहा जाता हैं कि हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे हैं । हम इसे कुछ ऐसे लहजे में कहते हैं जैसे इक्कीसवीं सदी अपने द्वार पर बन्दनवार तोरण लगाकर हमारे स्वागत के लिए खड़ी है। हमें द्वार लांघना मात्र है और हम सपनों की दुनिया में पहुंच जाएंगे किन्तु सचाई यह है कि आने वाली सदी में हमें कांटों पर चलना पड़ सकता हैं । हम पर्यावरण का विनाश कर चुके हैं । वह विषाक्त हो चला गया है हमारे ऊर्जा के स्रोत, वन, जल, खनिज, भूमि की उत्पादन क्षमता समाप्त होती जा रही है दूसरी ओर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है । अगर हमने उपाय नहीं किए तो हमारी दुर्गति अवश्यं भावी है । यह पुस्तक भविष्य की उसी चिन्ता को ध्यान में रखकर लिखी गई है किन्तु आशा की किरण भी है अगर उपाय किए जाएं तो नई सदी को हम सँवार भी सकते हैं पुस्तक में इस आशा को भी जगाया गया है ।

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