Hindi bhasha aur nagar lipi
Material type:
- H 491.43 BHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.43 BHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 56620 |
प्रायः छात्र जब हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि के विषय में प्रकाशित विविध अंग्रेजी पुस्तकों, पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों आदि का गहन अध्ययन करते हैं, तब उनके सामने सबसे पहली और बड़ी कठिनाई यह आती है कि वे इतस्ततः बिखरी हुई विपुल सामग्री को आत्मसात् कैसे करें ? एक ओर तो वे विभिन्न विद्वानों के मत-मतांतरों की भूल-भुलैया में बेतरह अटक-भटक कर भ्रमित हो जाते हैं, दूसरी ओर हिंदी ध्वनियों, संज्ञाओं, कारकों (विभक्तियों), सर्वनामों, विशेषणों, उपसर्गों, परसर्गों, प्रत्ययो आदि के क्रमिक विकास के विषय में अत्यंत विस्तृत विवेचन रूपी 'जन्तर-मन्तर' के बीच आवश्यक 'सार-तत्त्व' के ही 'छूमन्तर' हो जाने से एकदम भौंचक रह जाते हैं। इसका एकमात्र दुष्फल यह होता है कि 'हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि' दोनों ही विषय उन छात्रों को जिन्न भूत-सरीखे दिखने लगते हैं। ऐसे संकटकाल में उन्हें कोई भी ऐसी पुस्तक 'रामबाण' औषधि के समान नजर नहीं आती, जिसमें विभिन्न पुस्तकों में फैली- बिखरी महत्त्वपूर्ण सामग्री को समेटते हुए, विभिन्न विद्वानों के उद्धरणों की उपलब्धि एकत्र ही संभव हो सके। उनका एकमात्र उद्देश्य तो यही रहता है कि उन्हें अपने अत्यंत अर्थाभावों और समयाभावों के चलते विविध पुस्तकें, पत्रिकाएँ आदि पढ़ने और पढ़कर घोटने का काफी कष्ट और समय नष्ट न करना पड़े। ३० वर्षों के अध्यापन काल में मैंने छात्रों की इस कठिनाई को निकट से देखा और अनुभव किया है।
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