Bhartiya janjaatiya : udbhaw evam viksah
Material type:
- 9789388514781
- H 305.800954 BAR
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 305.800954 BAR (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168043 |
सामान्यतः जन-जाति का अर्थ एक ऐसे समूह से लेते हैं जिसका एक विशिष्ट नाम होता है; जिसमें एक समूह के होने की भावना होती हैं तथा जो एक सामान्य भौगोलिक क्षेत्र में जैसे जंगलों, पहाड़ों या बीहड़ों में पाए जाते हों। यह एक अन्तर्विवाही समूह होता है अर्थात् जन-जाति के लोग अपने ही समूह में विवाह करते हैं। एक जन-जाति के लोगों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उनकी ही कोई संस्था होती है। जहाँ प्रत्येक जन-जाति की पृथक् सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक परम्पराएँ होती हैं, वहाँ प्रत्येक जन जाति का अपना पृथक् 'जादू' होता है। यह जादू हितकारी भी हो सकता है जिसे सफेद जादू कहते हैं तथा अहितकारी भी हो सकता है जिसे काला जादू कहते हैं। हरेक जन-जाति की अपनी आचार संहिता होती है तथा उनके अपने निषेध या 'टेबू' होते हैं, ये निषेध यह बतलाते हैं कि जन-जाति के लोगों को अमुक-अमुक कार्य नहीं करने चाहिए वैसे पीपल को नहीं जलाना चाहिए, रजस्वला स्त्री को खेत में नहीं जाना चाहिए आदि।
भारत में स्वतन्त्रता के बाद जन-जातियों का विकास संविधान की स्वीकृत नीति का भाग बन गया। जनजातियों की सूचियाँ बनाई गयीं। 1950 में जनजातियों की संख्या देश में 212 थी जो 1971 में 427 हो गयी, और अब यह संख्या जन-जातियों के नामों के उच्चारण, उनमें पाए जाने वालो आन्तरिक विभेदों और राजनीतिक कारणों के कारण और भी अधिक हो गयी है। अफ्रीका के बाद भारत ही ऐसा देश है जहाँ जन-जातियों की जनसंख्या सर्वाधिक हैं। आदिवासियों के आख्यान उनके मिथक, उनकी परम्पराएँ आज इसलिए महत्त्वपूल नहीं हैं कि वे बीते युगों की कहानी कहती हैं, बल्कि उनकी अपनी संस्थाओं और संस्कृति के एतिहासिक तर्क और बौद्धिक प्रसंगिकता के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी कलात्मक अभिव्यक्तियाँ, सौन्दर्यात्मक चेष्टाएँ और अनूष्ठानिक क्रियायें हमारी-आपकी कला-संस्कृति की तरह आराम के क्षणों को भरने वाली चीजों नहीं हैं, उनकी पूरी जिन्दगी से उनका एक क्रियाशील, प्रयोजनशील और पारस्परिक रिश्ता है, इसीलिए उनकी संस्कृति एक ऐसी अन्विति के रूप में आकार ग्रहण करती है जिनमें उनके जीवन और यथार्थ की पूनार्चना होती हैं।
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