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Na jaane kahan khana

Material type: TextTextSeries: Rastrabhartiya/ lokodya Granthamala ; 563Edition: 9th edISBN:
  • 978812634084
Subject(s): DDC classification:
  • H DEV A
Summary: न जाने कहाँ कहाँ - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की सर्वाधिक परिचित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी की अधिकांश रचनाएँ मध्य एवं निम्न वर्ग की पृष्ठभूमि में लिखी गयी हैं। प्रस्तुत उपन्यास के पात्रों का सम्बन्ध भी इन्हीं दो वर्गों से है। प्रवासजीवन, प्रवासजीवन की बहू चैताली, मौसेरी बहन कंकना दी, छोटा बेटा सौम्य, विधवा सुनौला, सुनीला की अध्यापिका बेटी व्रतती, ग़रीब अरुण और धनिक परिवार की लड़की मिन्टू——ये सभी-के-सभी पात्र अपने-अपने ढंग से जी रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रवासजीवन विपत्नीक हैं। घर के किसी मामले में अब उनसे पहले की तरह कोई राय नहीं लेता। उनसे बातचीत के लिए किसी के पास समय नहीं है। रिश्तेदार आते नहीं हैं, क्योंकि अपने घर में किसी को ठहराने का अधिकार तक उन्हें नहीं है। इन सबसे दुःखी होकर भी वह विचलित नहीं होते। सोचते हैं कि हम ही हैं जो समस्या या असुविधा को बड़ी बनाकर देखते हैं, अन्यथा इस दुनिया में लाखों लोग हैं जो किन्हीं कारणों से हमसे भी अधिक दुःखी हैं। और भी अनेक अनेक प्रसंग हैं जो इस गाथा के प्रवाह में आ मिलते हैं। शायद यही है दुनिया अथवा दुनिया का यही नियम है। जहाँ-तहाँ, जगह-जगह यही तो हो रहा है! उपन्यास का विशेष गुण है कथ्य की रोचकता। हर पाठक के साथ कहीं-न-कहीं कथ्य का रिश्ता जुड़ जाता है। जिन्होंने आशापूर्णा देवी के उपन्यासों को पढ़ा है, वे इसे पढ़ने से रह जायें, ऐसा हो ही नहीं सकता!
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न जाने कहाँ कहाँ - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की सर्वाधिक परिचित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी की अधिकांश रचनाएँ मध्य एवं निम्न वर्ग की पृष्ठभूमि में लिखी गयी हैं। प्रस्तुत उपन्यास के पात्रों का सम्बन्ध भी इन्हीं दो वर्गों से है। प्रवासजीवन, प्रवासजीवन की बहू चैताली, मौसेरी बहन कंकना दी, छोटा बेटा सौम्य, विधवा सुनौला, सुनीला की अध्यापिका बेटी व्रतती, ग़रीब अरुण और धनिक परिवार की लड़की मिन्टू——ये सभी-के-सभी पात्र अपने-अपने ढंग से जी रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रवासजीवन विपत्नीक हैं। घर के किसी मामले में अब उनसे पहले की तरह कोई राय नहीं लेता। उनसे बातचीत के लिए किसी के पास समय नहीं है। रिश्तेदार आते नहीं हैं, क्योंकि अपने घर में किसी को ठहराने का अधिकार तक उन्हें नहीं है। इन सबसे दुःखी होकर भी वह विचलित नहीं होते। सोचते हैं कि हम ही हैं जो समस्या या असुविधा को बड़ी बनाकर देखते हैं, अन्यथा इस दुनिया में लाखों लोग हैं जो किन्हीं कारणों से हमसे भी अधिक दुःखी हैं। और भी अनेक अनेक प्रसंग हैं जो इस गाथा के प्रवाह में आ मिलते हैं। शायद यही है दुनिया अथवा दुनिया का यही नियम है। जहाँ-तहाँ, जगह-जगह यही तो हो रहा है! उपन्यास का विशेष गुण है कथ्य की रोचकता। हर पाठक के साथ कहीं-न-कहीं कथ्य का रिश्ता जुड़ जाता है। जिन्होंने आशापूर्णा देवी के उपन्यासों को पढ़ा है, वे इसे पढ़ने से रह जायें, ऐसा हो ही नहीं सकता!

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