Adikaleen hindi sahitya adhyayan kee dishayen
Material type:
- 9789357754842
- H 891.4308 AAD
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.4308 AAD (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180208 |
आदिकालीन हिन्दी भाषा और साहित्य प्राकृत और अपभ्रंश से कई स्तरों पर घनिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है। जुड़ाव या सम्बन्ध का यह बिन्दु अब भी पर्याप्त समस्यात्मक बना हुआ है। इस सन्दर्भ में पहले जो अध्ययन हुए हैं, उनके प्रति भी हिन्दी क्षेत्र में एक उदासीन मनोवृत्ति पसरी हुई लगती है। कई बार तो पुरानी चीज़ों को 'फिर से' जान लेना भी नया होना होता है। 'फिर से' जान लेना सिर्फ़ तथ्यों को जान लेना नहीं है बल्कि उन तथ्यों को बाह्य और आन्तरिक प्रसंगों और पहलुओं के साथ 'समस्या' बनने की प्रक्रिया के रूप में जानना है। मसलन अधिकांश आदिकालीन साहित्य में मनोद्वेगों, तीव्र और तात्कालिक उत्तेजनाओं की भूमिका अधिक है। भावनाएँ और प्रेरणाएँ विरल हैं। ऐसा क्यों है? उसमें भाषा, धर्म, अध्यात्म, दर्शन, समाज और राज्य की क्या भूमिका है? क्या है जो टूटा हुआ और अनुपस्थित-सा है? और जिसक़ी 'रिकवरी' भक्ति साहित्य में होती है? अनुभव की इस 'रिकवरी' का स्वरूप क्या है? इसका एक अर्थ यह भी होगा कि भक्ति साहित्य को आदिकालीन साहित्य के प्रसंग में पढ़ा जाना ज़रूरी लग सकता है-सिर्फ़ ऐतिहासिक क्रम के लिए नहीं, अनुभूति और अभिव्यक्ति की साहित्यिक संरचनाओं के लिए भी। यह समस्या-क्षेत्र पर्याप्त चुनौती-भरा है। डॉ. अनिल राय ने आदिकालीन भाषा और साहित्य पर हुए अध्ययनों में से उसी सामग्री का चयन किया है जो किसी न किसी 'समस्या-क्षेत्र' का उद्घाटन करती है। यह सम्पादित पुस्तक डॉ. राय के परिश्रम और वैदुष्य का ही नहीं आदिकालीन साहित्य को 'फिर से' पढ़ने की उनकी अन्तर्दृष्टि का भी प्रमाण प्रस्तुत करती है। निश्चय ही यह किताब आदिकालीन साहित्य के अध्ययन की नयी दिशाओं को खोलने में 'कैटेलेटिक एजेंट' का काम करेगी ।
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