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Indira Gandhi, aapatkaal aur 1977 ka chunav

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Anamika 2024Description: 285pISBN:
  • 9789364101790
Subject(s): DDC classification:
  • H 954.051 CHO
Summary: देश की जनता ने 1971 के आम चुनाव की जीत ने इंदिरा के अंदर यह भाव भर दिया कि अब देश की जनता पर इदिरा का भी वैसा ही प्रभाव है, जैसा उसके पिता का था और संगठन कांग्रेस को भी इंदिरा को पार्टी के भीतर वैसा नेता मानना होगा जैसा उसके पिता जवाहरलाल नेहरू को संगठन के नेताओं ने माना था। प्रधानमंत्रा इंदिरा गांधी 1971 के चुनाव पूर्व में जिस राजनैतिक स्थिति का सामना कर रही थी, वह बहुत कुछ वैसी ही थी जैसी उनके पिता जवाहरलाल नेहरू 1952 में कर रहे थे। नेहरू भी पार्टी के भीतर तमाम दिग्गज नेताओं के विरोध और मतभेदों का सामना करते हुए देश के प्रथम आम चुनाव में गए थे। स्वतंत्राता आंदोलन में नेहरू के सहयोगी रहे कई नेताओं ने प्रथम आम चुनाव में नेहरू की नीतियों के खिलाफ ताल ठोक दी थी। हांलाकि तमाम मतभेदों के बाद भी नेहरू ने पार्टी को तोड़ा नहीं था, जैसा की इंदिरा ने 1969 में किया था। नेहरू में धेर्य और संयम के साथ सबकों साथ लेकर चलने की कला थी। इंदिरा में अपने पिता के समान धैर्य और संयम नही था। इंदिरा सरकार और संगठन पर उसी तरह पकड़ चाहती थी, जैसी उसके पिता जवाहर लाल नेहरू की थी। 1971 का चुनाव सिर्फ प्रधानमंत्रा चुनने का चुनाव नहीं था बल्कि इस बात का भी चुनाव था कि देश की जनता किसकों अपना भाग्य विधाता मानती है? देश की जनता किस कांग्रेस को असली कांग्रेस मानती है, इंदिरा की नई कांग्रेस को या फिर पुराने नेताओं से भरे हुए सिडिकेट के नेताओं की कांग्रेस को?
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देश की जनता ने 1971 के आम चुनाव की जीत ने इंदिरा के अंदर यह भाव भर दिया कि अब देश की जनता पर इदिरा का भी वैसा ही प्रभाव है, जैसा उसके पिता का था और संगठन कांग्रेस को भी इंदिरा को पार्टी के भीतर वैसा नेता मानना होगा जैसा उसके पिता जवाहरलाल नेहरू को संगठन के नेताओं ने माना था। प्रधानमंत्रा इंदिरा गांधी 1971 के चुनाव पूर्व में जिस राजनैतिक स्थिति का सामना कर रही थी, वह बहुत कुछ वैसी ही थी जैसी उनके पिता जवाहरलाल नेहरू 1952 में कर रहे थे। नेहरू भी पार्टी के भीतर तमाम दिग्गज नेताओं के विरोध और मतभेदों का सामना करते हुए देश के प्रथम आम चुनाव में गए थे। स्वतंत्राता आंदोलन में नेहरू के सहयोगी रहे कई नेताओं ने प्रथम आम चुनाव में नेहरू की नीतियों के खिलाफ ताल ठोक दी थी। हांलाकि तमाम मतभेदों के बाद भी नेहरू ने पार्टी को तोड़ा नहीं था, जैसा की इंदिरा ने 1969 में किया था। नेहरू में धेर्य और संयम के साथ सबकों साथ लेकर चलने की कला थी। इंदिरा में अपने पिता के समान धैर्य और संयम नही था। इंदिरा सरकार और संगठन पर उसी तरह पकड़ चाहती थी, जैसी उसके पिता जवाहर लाल नेहरू की थी। 1971 का चुनाव सिर्फ प्रधानमंत्रा चुनने का चुनाव नहीं था बल्कि इस बात का भी चुनाव था कि देश की जनता किसकों अपना भाग्य विधाता मानती है? देश की जनता किस कांग्रेस को असली कांग्रेस मानती है, इंदिरा की नई कांग्रेस को या फिर पुराने नेताओं से भरे हुए सिडिकेट के नेताओं की कांग्रेस को?

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