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Banaras ke vismrit jannayak : Babu Jagat Singh

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani 2024Description: 334pISBN:
  • 9789362878441
Subject(s): DDC classification:
  • H 954.542 QUR
Summary: पुस्तक विशेष रूप से 1799 में बनारस में हुए विद्रोह का विस्तृत और सूक्ष्म विवरण प्रस्तुत करती है और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हिन्दू-मुस्लिम अभिजात वर्ग की एक मज़बूत प्रक्रियात्मक एकता को भी दर्शाती है। बनारस को एक मध्यवर्ती राज्य (Buffer State) बनाने के लिए अवध से छीन लिया गया था, ताकि भविष्य में पूर्वी-पश्चिमी ज़मींदार और नवाब एकजुट न हो सकें और आपस में सहयोग - सहभागिता न कर सकें। अपने संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए भारतीय राजाओं एवं ज़मींदारों की मर्यादा में अंग्रेज़ों का ग़ैर मुनासिब हस्तक्षेप, विभिन्न ज़मींदारों और राज परिवारों के सक्षम और यथोचित दावेदारों के लिए शुभ संकेत नहीं था । बाबू जगत सिंह एवं वज़ीर अली की इस अनकही कहानी के माध्यम से यह किताब इस पहलू को बखूबी पेश करती है । पुस्तक शोध का एक बेजोड़ नमूना है जिसे शायद प्रारम्भ ही नहीं किया गया होता यदि श्री प्रदीप नारायण सिंह ने पितृऋण या पूर्वजों को समुचित श्रद्धांजलि प्रदान करने की गरज से इतिहास की रिक्तता को भरने का प्रयास नहीं किया होता । अंग्रेज़ ऐसा बनारस राज बनाना चाहते थे जो ब्रिटिश राजनीतिक हित के अनुकूल हो । इससे यह बात भी उजागर होती है कि क्यों दूसरे दावेदारों को विस्मृत कर दिया गया। बाबू जगत सिंह का मुख्य अपराध यह था कि उन्होंने गंगा के क्षेत्र में अंग्रेज़ों का विरोध करने की कोशिश लगभग ऐसे समय में की जब अंग्रेज़ इस क्षेत्र में अपने क़दम मज़बूती से जमाने की कोशिश कर रहे थे तब बाबू जगत सिंह ने एक असफल लेकिन बहुत गम्भीर विद्रोह का आयोजन किया। बाबू जगत सिंह के विस्मृत संघर्ष और उनकी आज़ादी के आग्रह पर आधारित यह पुस्तक बनारस क्षेत्र में विद्रोहों की वंशावली को भी प्रभावित करती है। बाबू जगत सिंह के सारनाथ की ख़ुदाई से सम्बन्धित होने के कारण यह पुस्तक बौद्ध स्थल सारनाथ के पुनः प्रतिष्ठापन की प्रक्रिया के सन्दर्भ में भी कई गम्भीर तथ्यात्मक अंश प्रस्तुत करती है ।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 954.542 QUR (Browse shelf(Opens below)) Available 180277
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पुस्तक विशेष रूप से 1799 में बनारस में हुए विद्रोह का विस्तृत और सूक्ष्म विवरण प्रस्तुत करती है और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हिन्दू-मुस्लिम अभिजात वर्ग की एक मज़बूत प्रक्रियात्मक एकता को भी दर्शाती है। बनारस को एक मध्यवर्ती राज्य (Buffer State) बनाने के लिए अवध से छीन लिया गया था, ताकि भविष्य में पूर्वी-पश्चिमी ज़मींदार और नवाब एकजुट न हो सकें और आपस में सहयोग - सहभागिता न कर सकें। अपने संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए भारतीय राजाओं एवं ज़मींदारों की मर्यादा में अंग्रेज़ों का ग़ैर मुनासिब हस्तक्षेप, विभिन्न ज़मींदारों और राज परिवारों के सक्षम और यथोचित दावेदारों के लिए शुभ संकेत नहीं था । बाबू जगत सिंह एवं वज़ीर अली की इस अनकही कहानी के माध्यम से यह किताब इस पहलू को बखूबी पेश करती है । पुस्तक शोध का एक बेजोड़ नमूना है जिसे शायद प्रारम्भ ही नहीं किया गया होता यदि श्री प्रदीप नारायण सिंह ने पितृऋण या पूर्वजों को समुचित श्रद्धांजलि प्रदान करने की गरज से इतिहास की रिक्तता को भरने का प्रयास नहीं किया होता । अंग्रेज़ ऐसा बनारस राज बनाना चाहते थे जो ब्रिटिश राजनीतिक हित के अनुकूल हो । इससे यह बात भी उजागर होती है कि क्यों दूसरे दावेदारों को विस्मृत कर दिया गया। बाबू जगत सिंह का मुख्य अपराध यह था कि उन्होंने गंगा के क्षेत्र में अंग्रेज़ों का विरोध करने की कोशिश लगभग ऐसे समय में की जब अंग्रेज़ इस क्षेत्र में अपने क़दम मज़बूती से जमाने की कोशिश कर रहे थे तब बाबू जगत सिंह ने एक असफल लेकिन बहुत गम्भीर विद्रोह का आयोजन किया। बाबू जगत सिंह के विस्मृत संघर्ष और उनकी आज़ादी के आग्रह पर आधारित यह पुस्तक बनारस क्षेत्र में विद्रोहों की वंशावली को भी प्रभावित करती है। बाबू जगत सिंह के सारनाथ की ख़ुदाई से सम्बन्धित होने के कारण यह पुस्तक बौद्ध स्थल सारनाथ के पुनः प्रतिष्ठापन की प्रक्रिया के सन्दर्भ में भी कई गम्भीर तथ्यात्मक अंश प्रस्तुत करती है ।

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