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Mitti bol padi

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani 2024Description: 278pISBN:
  • 9789357755887
Subject(s): DDC classification:
  • H MAD B
Summary: बलबीर माधोपुरी पंजाबी का एक समर्थ साहित्यकार है जिसने साहित्य रचने के साथ-साथ खोज-कार्य में बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। पंजाबी जीवन को लेकर उसका बारीक ज्ञान उसकी कविता और गद्य के रूप में उभरा। उसने पंजाबी समाज की परतें खंगालते हुए अपनी आत्मकथा छांग्या रुख लिखी जिसका हिन्दी, अंग्रेज़ी, शहमुखी, उर्दू तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह आत्मकथा उसके निजी जीवन की परतें खंगालने के साथ-साथ पंजाबी समाज में दलित-जीवन का गहरा विश्लेषण है। यह आत्मकथा पंजाबी समाज में दलित मनुष्य का जीवन्त अनुभव प्रस्तुत करती है। अपनी कविता में उसने ऐसे दलित अनुभव को 'भखदा पताल' (दहकता पाताल) कहा था। वह उत्तम वार्ताकार और अनुवादक भी है। उसकी खोज-वृत्ति ने उसको बीसवीं सदी के पंजाब में बड़ी सामाजिक हलचलें मचाने वाली आदि-धर्म लहर की ओर खींचा। परिणामस्वरूप, उसने मौलिक स्रोतों और निजी मुलाक़ातों पर आधारित किताब आदि-धर्म के संस्थापक : गदरी बाबा मंगू राम लिखी। मिट्टी बोल पड़ी (उपन्यास) के साथ बलवीर माधोपुरी ने उपन्यास लेखन के क्षेत्र में पदार्पण करते हुए आदि-धर्म लहर के कारण पंजाबी दलित जीवन और चेतना पर पड़े प्रभाव को रेखांकित किया है। इस लहर ने न केवल पंजाब की सियासत पर अपनी गहरी छाप छोड़ी, बल्कि दलितों के अन्दर सदियों से उनके साथ होते पक्षपात, लूटखसोट के विरुद्ध और सामाजिक बराबरी के लिए मनुष्य अधिकारों की नयी जागृति पैदा की। उपन्यास के पात्र सामाजिक क्रूर यथार्थ के साथ जूझते हुए चलते हैं और वर्ण-धर्म के मानव-हन्ता रीति-रिवाज़ों और मनौतियों को मानने से इन्कार करते हैं। उनका नज़रिया धर्मो-जातियों और इलाक़ों से कहीं ऊपर है। दुआबा के आदि-धर्मियों के चमड़ा कारोबार, दूसरे विश्वयुद्ध और मनुष्यपरक पक्षों के साथ साँझ के माध्यम से हुई प्रगति का ऐतिहासिक प्रगतिवादी गल्पीय वृत्तान्त है। इसके केन्द्र में है, जैजों-उत्तरी भारत का व्यापारिक मरकज़ जिसके ज़रिये ज़िन्दगी के अनेक पक्षों को नये रूपों में उजागर किया गया है। इस अनोखी औपन्यासिक रचना में समय की स्थितियों के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों का विशेष वर्णन है।
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बलबीर माधोपुरी पंजाबी का एक समर्थ साहित्यकार है जिसने साहित्य रचने के साथ-साथ खोज-कार्य में बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। पंजाबी जीवन को लेकर उसका बारीक ज्ञान उसकी कविता और गद्य के रूप में उभरा। उसने पंजाबी समाज की परतें खंगालते हुए अपनी आत्मकथा छांग्या रुख लिखी जिसका हिन्दी, अंग्रेज़ी, शहमुखी, उर्दू तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह आत्मकथा उसके निजी जीवन की परतें खंगालने के साथ-साथ पंजाबी समाज में दलित-जीवन का गहरा विश्लेषण है। यह आत्मकथा पंजाबी समाज में दलित मनुष्य का जीवन्त अनुभव प्रस्तुत करती है। अपनी कविता में उसने ऐसे दलित अनुभव को 'भखदा पताल' (दहकता पाताल) कहा था। वह उत्तम वार्ताकार और अनुवादक भी है। उसकी खोज-वृत्ति ने उसको बीसवीं सदी के पंजाब में बड़ी सामाजिक हलचलें मचाने वाली आदि-धर्म लहर की ओर खींचा। परिणामस्वरूप, उसने मौलिक स्रोतों और निजी मुलाक़ातों पर आधारित किताब आदि-धर्म के संस्थापक : गदरी बाबा मंगू राम लिखी। मिट्टी बोल पड़ी (उपन्यास) के साथ बलवीर माधोपुरी ने उपन्यास लेखन के क्षेत्र में पदार्पण करते हुए आदि-धर्म लहर के कारण पंजाबी दलित जीवन और चेतना पर पड़े प्रभाव को रेखांकित किया है। इस लहर ने न केवल पंजाब की सियासत पर अपनी गहरी छाप छोड़ी, बल्कि दलितों के अन्दर सदियों से उनके साथ होते पक्षपात, लूटखसोट के विरुद्ध और सामाजिक बराबरी के लिए मनुष्य अधिकारों की नयी जागृति पैदा की। उपन्यास के पात्र सामाजिक क्रूर यथार्थ के साथ जूझते हुए चलते हैं और वर्ण-धर्म के मानव-हन्ता रीति-रिवाज़ों और मनौतियों को मानने से इन्कार करते हैं। उनका नज़रिया धर्मो-जातियों और इलाक़ों से कहीं ऊपर है। दुआबा के आदि-धर्मियों के चमड़ा कारोबार, दूसरे विश्वयुद्ध और मनुष्यपरक पक्षों के साथ साँझ के माध्यम से हुई प्रगति का ऐतिहासिक प्रगतिवादी गल्पीय वृत्तान्त है। इसके केन्द्र में है, जैजों-उत्तरी भारत का व्यापारिक मरकज़ जिसके ज़रिये ज़िन्दगी के अनेक पक्षों को नये रूपों में उजागर किया गया है। इस अनोखी औपन्यासिक रचना में समय की स्थितियों के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों का विशेष वर्णन है।

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