Sampoorn dalit andolan : Pasamanda Tasawwur
Material type:
- 9788119028405
- H 305.56 ANW
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Gandhi Smriti Library | H 305.56 ANW (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169728 |
ग़ुलामी भले ही विदा हो गई हो, जाति तो मुसलमानों में क़ायम है ही। उदाहरण के लिए, बंगाल के मुसलमानों की स्थिति को लिया जा सकता है। 1901 के लिए बंगाल प्रान्त के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में यह रोचक तथ्य दर्ज किए हैं—‘मुसलमानों का चार वर्गों—शेख़़, सैयद, मुग़ल और पठान—में परम्परागत विभाजन इस प्रान्त (बंगाल) में प्रायः लागू नहीं है। मुसलमान दो मुख्य सामाजिक विभक्त मानते हैं—1. अशराफ़ अथवा शरफ़ और 2. अज़लाफ़। अशराफ़ से तात्पर्य है ‘कुलीन’ और इसमें विदेशियों के वंशज तथा ऊँची जाति के धर्मान्तरित हिन्दू शामिल हैं। व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के धर्मान्तरित शेष अन्य मुसलमान अज़लाफ़ अर्थात नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माने जाते हैं। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीना या रासिल, जो ‘रिज़ाल’ का भ्रष्ट रूप है, बेकार कहा जाता है। कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग ‘अरज़ाल’ भी है, जिसमें आनेवाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं। उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा-जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक क़ब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है। इन वर्गों में भी हिन्दू में प्रचलित जैसी सामाजिक वरीयता और जातियाँ हैं।... मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दु:खद है, किन्तु उससे भी अधिक दु:खद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज-सुधार हेतु इन बुराइयों के सफलतापूर्वक उन्मूलन के लिए कोई संगठित आन्दोलन नहीं उभरा।...दूसरी ओर, मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयाँ हैं। परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते। इसके विपरीत, अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं। —डॉ. बी.आर. आम्बेडकर
There are no comments on this title.