Vidurneeti
Material type:
- 9789362876072
- H 891.43 VID
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.43 VID (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180690 |
"विदुरनीति' 'महाभारत' का ही अंश है। 'उद्योग पर्व' के 33 से 40 अध्याय तक का यह आठ अध्याय विदुरनीति के नाम से ही जाना जाता है। दुर्योधन ने पाण्डवों पर न जाने कितने अत्याचार किये, लेकिन पाण्डव धर्मपरायणता के कारण सदा सहते रहे। उन्होंने विराटनरेश के पुरोहित को भेजा, लेकिन दुर्योधन ने उसे नहीं माना। धृतराष्ट्र ने संजय को युधिष्ठिर के पास भेजा। दूत द्वारा रात्रि में विदुर को बुलाते हैं तथा विदुर धृतराष्ट्र के साथ जो वार्तालाप करते हैं एवं प्रश्नोत्तर का यह प्रसंग विदुरनीति के रूप में प्रसिद्ध है। यह दुर्लभ ग्रन्थरत्न है जिसमें व्यवहार, नीति, सदाचार, धर्म, सुख-दुःख प्राप्ति, त्याज्य और ग्राह्य गुणों तथा कर्मों का निर्णय, त्याग की महिमा, न्याय का स्वरूप, सत्य, परोपकार, क्षमा, अहिंसा, मित्र के लक्षण, कृतघ्न की दुर्दशा, निर्लोभता आदि का विशद वर्णन करते हुए राजधर्म का सुन्दर निरूपण किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक अपठित, विद्वान्, मूर्ख, तरुण, वृद्ध, बालक, स्त्री-पुरुष, शासक, प्रजा, धनी, गरीब, विद्यार्थी, शिक्षक, सेवाव्रती और युद्ध तथा सुखी जीवन-निर्वाह चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान उपयोगी है। इसका प्रत्येक श्लोक मानव को कल्याण के लिए उन्मुख तथा प्रवृत्त करता हुआ दीख रहा है। इसका प्रधान विषय राजधर्म का निरूपण है अल्पमति, दीर्घसूत्री, शीघ्रता और अविवेकपूर्ण निर्णय नहीं लेना चाहिए। राजा काम-क्रोध का त्याग करने वाला, विशेषज्ञ, शास्त्रज्ञ, कर्मनिष्ठ, सत्यपात्र में धन देने वाला और शत्रुओं के साथ यथोचित व्यवहार करने वाला होता है। राजा को स्थिति, लाभ-हानि, कोश तथा दण्ड आदि की मात्रा को जानना परम आवश्यक है। इसके बिना राज्य स्थिर नहीं रह सकता। अविश्वसनीय व्यक्ति का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए तथा विश्वस्त पर भी अत्यन्त विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि विश्वास से भय उत्पन्न होता है, जो मूल का भी विनाश कर देता है। राजनीति के अतिरिक्त धर्म और सदाचार का प्रतिपादक यह ग्रन्थरत्न समाज का सदा हितचिन्तन करता है। थोड़े से शब्दों में नीतिकार ने मनुष्य के लिए गागर में सागर भरने वाले कथन का दिग्दर्शन कराया है। धर्म की रक्षा सत्य से और सत्य ही सब कुछ है, इस प्रकार का व्यावहारिक ज्ञानमूलक विचार सबके सामने उपस्थित है। 'विदुरनीति' भारतीय संस्कृति और मानवता का मानक एवं प्रतिपादक ग्रन्थ है। भारतीय संस्कृति की सभी विशेषताएँ इसमें समाहित हैं । जीवन-मूल्यों को सुदृढ़ करने वाले अनेक विचार अनमोल मोती की तरह सर्वत्र बिखरे हुए दिखाई देते हैं। यह भाषा की सरलता, भावुकता, प्रसादगुणों का लालित्य, कान्तासम्मितोपदेश एवं सरल स्वाभाविक अलंकारों की छटा से सहृदयों के हृदय को बलात् वशीभूत करता है। 'विदुरनीति' एक नीतिशास्त्र ही नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति का प्रतिपादक धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति का साधक, साहित्यिक अवदानों से भरा हुआ एक अमूल्य भारतीय परम्परा का लेखा-जोखा रखने वाला मानक ग्रन्थरत्न है। 'विदुरनीति' निराला है। इसके प्रत्येक अध्याय में विभिन्न विषयों के सन्दर्भ में विस्तारपूर्वक दिग्दर्शन कराया गया है।
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