Kshitij hatheli par
Material type:
- 9789362878748
- H 891.4303 CHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Gandhi Smriti Library | H 891.4303 CHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 180808 |
क्षितिज हथेली पर संग्रह की कविताएँ समाज, संस्कृति और मनुष्य की जटिलताओं को सहजता और गहराई से अभिव्यक्त करती हैं। इन कविताओं में ग्रामीण परिवेश की सरलता, शहरी जीवन की संवेदनहीनता और मानवीय भावनाओं के विभिन्न पहलुओं का चित्रण मिलता है। इस संग्रह में कई ऐसी कविताएँ हैं जो अपने पाठ में गहरे उद्वेलित करती हैं और सोचने पर मजबूर करती हैं। पहली ही कविता 'मैं सड़क ताउम्र न बन सका' ग्रामीण परिवेश के बदलते स्वरूप और शहरीकरण के कारण खोती हुई पहचान का सजीव चित्रण करती है। गाँव की पगडण्डियों से दूर हो जाने का दर्द आधुनिकता की कठोर वास्तविकताओं से टकराता है। 'वे शहर में थे पर शहर अपना न था' प्रवासी मज़दूरों के संघर्ष और उनके भावनात्मक द्वन्द्व को व्यक्त करती है| इसी सन्दर्भ में ‘दो पल का सुकून और मीलों का फ़ासला' गाँव और शहर के बीच बढ़ती दूरी का मार्मिक उल्लेख करती है। 'शहर भूल चुका है संवेदना का अर्थ कुछ हद तक' आधुनिक यान्त्रिकता और मानवता के क्षरण को दर्शाती है। ‘फ़िलहाल तो इतना ही है हिसाब' में समाज की भौतिकवादी सोच पर तीखी टिप्पणी है। जबकि ‘तहज़ीब के नाम पर' और 'लाभ-हानि' जैसी कविताएँ सामाजिक व्यवस्थाओं के खोखलेपन और रिश्तों में बढ़ते स्वार्थ को रेखांकित करती हैं। इन कविताओं में स्त्री के संघर्ष, साहस और सहनशीलता का एक वृहद् कैनवस है। ‘दहक' कविता समाज में महिलाओं के विरूद्ध हो रही हिंसा तथा अपराधों के प्रतिरोध स्वरूप परिणामों की व्याख्या करती है। 'सब्र में घुली हुई औरत उफ़ नहीं करती' में प्रतीक्षारत स्त्री के धैर्य और उसकी अदम्य शक्ति को दर्शाया गया है। ‘पितृसत्तात्मक दायरे से परे' स्त्री के अधिकारों और न्याय की चाह को उजागर करती है। 'समय की नायिकाएँ' सशक्त और साहसी स्त्रियों के योगदान को सलाम करने वाली कविता है। प्रेम, संवेदनाएँ और मानवीय रिश्तों का उल्लेख प्रतिभा चौहान की कविताओं में बार-बार आता है। ‘प्रेम' कविता में प्रेम की सहजता और उसकी शाश्वतता का वर्णन है। ‘भावनाओं का सरोवर' प्रेम की गहराई और उसमें छिपी उदासी को व्यक्त करती है। ‘तुम नहीं छीन पाओगे दिलों में बसे हुए प्रेम को' नफ़रत के विरुद्ध प्रेम की ताक़त को प्रकट करती है। इस तरह इन कविताओं में प्रेम केवल व्यक्तिगत भावना नहीं, बल्कि समाज और मानवीय जीवन का आधार है। इस संग्रह की कविताओं में प्रकृति और जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता झलकती है। 'सृजन के बीज' संघर्ष और विनाश के बाद भी सृजन की सम्भावना को रेखांकित करती है। ‘अगली सुबह का सूरज' उम्मीद और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। ‘एक ओस की बूँद' और ‘पतझड़ और उम्मीदें' प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से जीवन के गहन सत्य को व्यक्त करती हैं। ‘इतिहास सिर्फ़ विजेताओं के लिए' और 'वे जो नहीं होते शरीक' जैसी कविताएँ इतिहास के परम्परागत दृष्टिकोण को चुनौती देती हैं। ये उन गुमनाम नायकों को आवाज़ देती हैं, जो समाज के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन अनदेखे रह जाते हैं। कुल मिलाकर देखें तो सहज-सम्प्रेष्य भाषा में रची गयी ‘क्षितिज हथेली पर’ की कविताएँ अपने विविध विषय और कुशल अभिव्यक्ति के कारण प्रतिभा चौहान को एक महत्त्वपूर्ण कवयित्री के रूप में स्थापित करती हैं।
There are no comments on this title.