Aalok parv
Material type:
- 9788171786862
- SA 891.4304 DWI
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | SA 891.4304 DWI (Browse shelf(Opens below)) | Available | 169275 |
आचार्य द्विवेदी ऐसे वाङ्मय-पुरुष हैं जिनका संस्कृत मुख है, प्राकृत बाहु है, अपभ्रंश जघन है और हिन्दी पाद है । आलोक पर्व के निबन्ध पढ़कर मन की आँखों के सामने उनका यह रूप साकार हो उठता है । आलोक पर्व के निबन्ध द्विवेदीजी के प्रगाढ़ अध्ययन और प्रखर चिन्तन से प्रसूत हैं । इन निबन्धों में उन्होंने एक ओर संस्कृत-काव्य की भाव-गरिमा की एक झलक पाठकों के सामने प्रस्तुत की है तो दूसरी ओर अपभ्रंश तथा प्राकृत के साथ हिन्दी के सम्बन्ध का निरूपण करते हुए लोकभाषा में हमारे सांस्कृतिक इतिहास की भूली कड़ियाँ खोजने का प्रयास किया है । आलोक पर्व में उन प्रेरणाओं के उत्स का साक्षात्कार पाठकों को होगा जिससे द्विवेदीजी ने यह अमृत-मन्त्र देने की शक्ति प्राप्त की- 'किसी से भी न डरना, गुरु से भी नहीं, मन्त्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं ।' आलोक पर्व के निबन्धों में आचार्य द्विवेदी ने भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति के प्रति अपनी सम्मान-भावना को संकोचहीन अभिव्यक्ति दी है, किन्तु उनकी यह सम्मान-भावना विवेकजन्य है और इसीलिए नई अनुसन्धित्सा का भी इनमें निरादर नहीं है ।
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