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Prachin bharat mein rasayan ka vikas v.1968

By: Material type: TextTextPublication details: Varanasi; Soochana Vibhag Uttar Pradesh; 1960Description: 840pSubject(s): DDC classification:
  • H 540 SAT
Summary: वेद के आविर्भाव के अनन्तर ही प्राचीन भारतीय आर्यों ने अनेक दृष्टिकोणों से सृष्टि को समझने का प्रयास किया, और उन्होंने इस प्रसंग में वेदांगों की रचना की। इन 6 वेदांगो में एक वेदांग कल्प है। इस कल्प के अन्तर्गत ही रसायन शास्त्र माना जा सकता है। भारतीय रसायन शास्त्र की परम्परा वैदिक संहिताओं की श्रुतियों से अनुप्रभावित है। प्रस्तुत ग्रन्थ- "प्राचीन भारत में रसायन का विकास" इस विषय का सांगोपांग अन्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है। वैदिक ऋचाओं से लेकर चरक और सुश्रुत कालीन विशुद्ध आयुर्वेदिक परम्पराओं तक की रसायन सामग्री का संकलन इसमें है, और बाद के तंत्र साहित्य का भी नागार्जुन को साधारणतया भारतीय रसायन का जन्मदाता माना जाता है और उससे प्रेरित होकर अनेक तन्त्राचार्यों ने पारद, अभ्रक, माक्षिक (रसों और उपरसों) पर कार्य किया।
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वेद के आविर्भाव के अनन्तर ही प्राचीन भारतीय आर्यों ने अनेक दृष्टिकोणों से सृष्टि को समझने का प्रयास किया, और उन्होंने इस प्रसंग में वेदांगों की रचना की। इन 6 वेदांगो में एक वेदांग कल्प है। इस कल्प के अन्तर्गत ही रसायन शास्त्र माना जा सकता है। भारतीय रसायन शास्त्र की परम्परा वैदिक संहिताओं की श्रुतियों से अनुप्रभावित है। प्रस्तुत ग्रन्थ- "प्राचीन भारत में रसायन का विकास" इस विषय का सांगोपांग अन्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है। वैदिक ऋचाओं से लेकर चरक और सुश्रुत कालीन विशुद्ध आयुर्वेदिक परम्पराओं तक की रसायन सामग्री का संकलन इसमें है, और बाद के तंत्र साहित्य का भी नागार्जुन को साधारणतया भारतीय रसायन का जन्मदाता माना जाता है और उससे प्रेरित होकर अनेक तन्त्राचार्यों ने पारद, अभ्रक, माक्षिक (रसों और उपरसों) पर कार्य किया।

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