Devnagari
Material type:
- H 491.43 DWI
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 491.43 DWI (Browse shelf(Opens below)) | Available | 52398 |
चारों निबन्धों का स्वर विश्लेषण और चिन्तन का है। यह तो मैं नहीं स्वीकार करता कि निबन्ध कठिन हैं; लेकिन यह अवश्य अनुभव करता हूँ कि इन्हें सावधानी से पढ़ने की आवश्यकता है। ऐसे बहुत से अंदा घोर वाक्य है जो विस्तृत व्याख्या की अपेक्षा करते हैं और जिनकी व्याख्या पाठक तभी कर सकेंगे जब उन्होंने संबंधित निबन्ध को ध्यानपूर्वक पड़ते हुए हृदयंगम कर लिया हो।
मुझे बहुत प्रसन्नता होगी यदि देवनागरी के प्रति हमारी समझ को इन निबन्धों से कुछ स्पष्टता का योग दान हो पाएगा ।
पुस्तक मोरारजी भाई को समर्पित करके कुछ विशिष्ट सन्तोष का अनुभव कर रहा है। वे राजनेता है लेकिन विद्या का इतना सम्मान उन्होंने किया है जितना विद्यासेवी भी नहीं करते। दो मर्मस्पर्शी घटनाओं का उल्लेख यहाँ कर रहा हूँ। आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का सम्मान किया जाना था, मंच पर देश के प्रधानमंत्री मोरारजी भाई के निकट आने के लिए बाजपेयी जी का नाम पुकारा गया। वाजपेयी जी अपने स्थान पर बड़े हो गये मोर बोले, "यदि किसी को सचमुच मेरा सम्मान करना है तो आए, मेरा सम्मान कर ले। मैं सम्मान करवाने के लिए मंच तक क्यों जाऊँ ?" मोरारजी भाई तत्काल मंच से उतरकर नीचे आये और उन्होंने सहर्ष वाजपेयीजी का सम्मान किया। उनके बड़प्पन से अभिभूत वाजपेयीजी ने झुककर उनका चरण-स्प किया। दूसरा प्रसंग है उनका मेरे घर पर पधारना वे कुरुक्षेत्र भाये हुए थे, उनकी कार पर जनता पार्टी का झंडा था। शाम को जब वे मेरे आवास पर पधारे तो कार का झंडा उतार दिया गया था। हरियाणा जनता पार्टी और हिमाचल जनता पार्टी के अध्यक्ष उनके साथ थे । लगभग घंटे भर में सब लोग चले गये । बाद में मैंने झंडे के रहस्य का पता लगाया । ज्ञात हुआ कि मोरारजी भाई ने रास्ते में कार रोककर कंडा उतरवा दिया था क्योंकि वे दलगत राजनीति से दूर एक अध्यापक के घर जा रहे थे। मुझे रोमांच हो पाया। इतना बड़ा नेता इतने छोटे विवरणों में भी दूसरों का इतना ध्यान रख सकता है !
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