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Gareeb Bacho ki Siksha / edited by Beetrees Awalass / tr. by Naresh Nadim v.1997

Material type: TextTextPublication details: Delhi; Grantha Shilpi; 1997Description: 221pISBN:
  • 8186684484
DDC classification:
  • H 370 GAR
Summary: शिक्षा की दृष्टि से तीसरी दुनिया के ज्यादातर देश विचित्र संकट के दौर से गुजर रहे हैं। इन देशों में स्कूल शिक्षा और भी खराब हालत में है। अध्यापकों को खराब परिवेश में काम करना पड़ता है और उससे भी कहीं अधिक खराब परिवेश में छात्रों को पढ़ना पड़ता है। इन सब का नतीजा बहुत त्रासद होता है, यानी खराब शिक्षण, गुणवत्ताविहीन शिक्षा और हर साल अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की बहुत बड़ी संख्या भौतिक और मानव संसाधनों की बर्बादी का संकेत देते हैं। इस स्थिति से उबरने के लिए दुनिया के अनेक तथाकथित पिछड़े देशों के सरकारी गैर-सरकारी संस्थान और संगठन अपने अपने स्तर पर इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए रास्ता तलाशने में लगे हुए हैं। प्रस्तुत पुस्तक भी इसी प्रकार के एक महत्त्वपूर्ण प्रयास का नतीजा है। चार लातीनी अमरीकी देशों के खराब परिवेश में काम करने वाले अध्यापकों, पढ़ने वाले छात्रों तथा उनको मिलने वाली शिक्षा का अध्ययन-विश्लेषण इस पुस्तक में किया गया है। स्कूल शिक्षा की समस्याओं को नृतत्व शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में जांचा-परखा गया है, जहां अलग-अलग परिस्थितियों में पैदा होने वाली समस्याओं के विभिन्न रूप हमें देखने को मिलते हैं। जाहिर है कि इनके समाधान भी एक जैसे नहीं हो सकते। शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े और आर्थिक दृष्टि से अभावग्रस्त तीसरी दुनिया के देशों के अध्यापकों, प्रशिक्षकों, प्रशासकों और अभिभावकों के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी साबित होगी। इसको पढ़ने के बाद उनको अपने आचार-व्यवहार के विषय में आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करने और यह जानने में मदद देगी कि छात्रों के मानसिक विकास के लिए इसमें किस प्रकार के सुधार की जरूरत है।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 370 GAR (Browse shelf(Opens below)) Available 67216
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शिक्षा की दृष्टि से तीसरी दुनिया के ज्यादातर देश विचित्र संकट के दौर से गुजर रहे हैं। इन देशों में स्कूल शिक्षा और भी खराब हालत में है। अध्यापकों को खराब परिवेश में काम करना पड़ता है और उससे भी कहीं अधिक खराब परिवेश में छात्रों को पढ़ना पड़ता है। इन सब का नतीजा बहुत त्रासद होता है, यानी खराब शिक्षण, गुणवत्ताविहीन शिक्षा और हर साल अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की बहुत बड़ी संख्या भौतिक और मानव संसाधनों की बर्बादी का संकेत देते हैं।

इस स्थिति से उबरने के लिए दुनिया के अनेक तथाकथित पिछड़े देशों के सरकारी गैर-सरकारी संस्थान और संगठन अपने अपने स्तर पर इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए रास्ता तलाशने में लगे हुए हैं। प्रस्तुत पुस्तक भी इसी प्रकार के एक महत्त्वपूर्ण प्रयास का नतीजा है।

चार लातीनी अमरीकी देशों के खराब परिवेश में काम करने वाले अध्यापकों, पढ़ने वाले छात्रों तथा उनको मिलने वाली शिक्षा का अध्ययन-विश्लेषण इस पुस्तक में किया गया है। स्कूल शिक्षा की समस्याओं को नृतत्व शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में जांचा-परखा गया है, जहां अलग-अलग परिस्थितियों में पैदा होने वाली समस्याओं के विभिन्न रूप हमें देखने को मिलते हैं। जाहिर है कि इनके समाधान भी एक जैसे नहीं हो सकते।

शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े और आर्थिक दृष्टि से अभावग्रस्त तीसरी दुनिया के देशों के अध्यापकों, प्रशिक्षकों, प्रशासकों और अभिभावकों के लिए यह पुस्तक बहुत उपयोगी साबित होगी। इसको पढ़ने के बाद उनको अपने आचार-व्यवहार के विषय में आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करने और यह जानने में मदद देगी कि छात्रों के मानसिक विकास के लिए इसमें किस प्रकार के सुधार की जरूरत है।

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