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Audhyogik vikas evam jila udhyog v.1998

By: Material type: TextTextPublication details: Beena; Aditya Publishers; 1998Description: 423pDDC classification:
  • H 338.4 JAI
Summary: आर्थिक उदारीकरण की तीव्रता तथा विश्व व्यापार संगठन की सक्षम गतिशीलता ने वर्तमान भारतीय औद्योगिक जगत को स्वविकसित तकनीकी के प्रयोग हेतु उत्प्रेरित किया है स्वविकसित प्रौद्योगिकी ही भारत जैसी विकासशील राष्ट्र के समुचित विकास के लिए संजीवनी है, जिसका आधार ग्रामीण क्षेत्रों में लघु-कुटीर उद्योगों से प्राप्त होता है प्रस्तुत ग्रंथ "जिला उद्योग केन्द्र" की सम्पूर्ण कार्य प्रणाली एवं उपलब्धियों का गहन अध्ययन है, जो लघु एवं कुटीर उद्योगों को अधोसंरचना प्रदान करने में सहयोगी है । प्रस्तुत ग्रंथ रचना के दस अध्यायों में लेखक का यह प्रयास रहा है कि लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास की वर्तमान स्थिति, उनकी योजनान्तर्गत उपलब्धियां, समाज कल्याण के क्षेत्र में भूमिका एवं असफलताएं जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत की जायें तथा उन असफलताओं के निराकरण के संदर्भ में सार्थक वैचारिक धारातल से उपजे सुझाव प्रस्तुत किये जायें आज जब हमारी अर्थव्यवस्था वृहदाकार उद्योगों के विकास के मोहजाल में फंसी हुई है तब भी हमारे देश के "जिला उद्योग केन्द्रों" की प्रशासनिक एवं संगठनात्मक संरचना किस प्रकार स्वरोजगारोत्पादन एवं स्थानीय संसाधनों के विदोहन में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहीं है ? यह इस ग्रंथ की प्रमुख प्रस्तुति है । "जिला उद्योग केन्द्रों" द्वारा लघु उद्यमियों को प्रदत्त शासकीय अनुदानों का भी इस ग्रंथ में उपादेयता स्तरीय मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। लक्ष्य एवं उपलब्धियों के अंकीय भ्रमजाल से सामान्य अध्येता को बचाने के लिए सारगर्भित एवं प्रभावपूर्ण भाषा में व्यावहारिक सुझाव एवं निष्कर्ष प्रस्तुत कर ग्रंथ को पूर्णता प्रदान की गयी है । प्रस्तुत ग्रंथ स्वरोजगार हेतु आगे आने वाले नवयुवकों, शासकीय नीति निर्माताओं, नियोजकों, कार्यरत उद्यमियों शोधार्थियों एवं अन्य अध्येताओं के लिए उपयोगी है।
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आर्थिक उदारीकरण की तीव्रता तथा विश्व व्यापार संगठन की सक्षम गतिशीलता ने वर्तमान भारतीय औद्योगिक जगत को स्वविकसित तकनीकी के प्रयोग हेतु उत्प्रेरित किया है स्वविकसित प्रौद्योगिकी ही भारत जैसी विकासशील राष्ट्र के समुचित विकास के लिए संजीवनी है, जिसका आधार ग्रामीण क्षेत्रों में लघु-कुटीर उद्योगों से प्राप्त होता है प्रस्तुत ग्रंथ "जिला उद्योग केन्द्र" की सम्पूर्ण कार्य प्रणाली एवं उपलब्धियों का गहन अध्ययन है, जो लघु एवं कुटीर उद्योगों को अधोसंरचना प्रदान करने में सहयोगी है ।

प्रस्तुत ग्रंथ रचना के दस अध्यायों में लेखक का यह प्रयास रहा है कि लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास की वर्तमान स्थिति, उनकी योजनान्तर्गत उपलब्धियां, समाज कल्याण के क्षेत्र में भूमिका एवं असफलताएं जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत की जायें तथा उन असफलताओं के निराकरण के संदर्भ में सार्थक वैचारिक धारातल से उपजे सुझाव प्रस्तुत किये जायें आज जब हमारी अर्थव्यवस्था वृहदाकार उद्योगों के विकास के मोहजाल में फंसी हुई है तब भी हमारे देश के "जिला उद्योग केन्द्रों" की प्रशासनिक एवं संगठनात्मक संरचना किस प्रकार स्वरोजगारोत्पादन एवं स्थानीय संसाधनों के विदोहन में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहीं है ? यह इस ग्रंथ की प्रमुख प्रस्तुति है । "जिला उद्योग केन्द्रों" द्वारा लघु उद्यमियों को प्रदत्त शासकीय अनुदानों का भी इस ग्रंथ में उपादेयता स्तरीय मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।

लक्ष्य एवं उपलब्धियों के अंकीय भ्रमजाल से सामान्य अध्येता को बचाने के लिए सारगर्भित एवं प्रभावपूर्ण भाषा में व्यावहारिक सुझाव एवं निष्कर्ष प्रस्तुत कर ग्रंथ को पूर्णता प्रदान की गयी है ।

प्रस्तुत ग्रंथ स्वरोजगार हेतु आगे आने वाले नवयुवकों, शासकीय नीति निर्माताओं, नियोजकों, कार्यरत उद्यमियों शोधार्थियों एवं अन्य अध्येताओं के लिए उपयोगी है।

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