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Shiksha manovigyan v.1996

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur; Rawat Publications; 1996Description: 328pISBN:
  • 8170333085
Subject(s): DDC classification:
  • H 370.15 SHR
Summary: शिक्षा मनोविज्ञान इस क्षेत्र में, हिन्दी में, स्तरीय पुस्तक की कमी दूर करने की दिशा में एक प्रयास है। अधिस्नातकीय स्तर के लिये लिखी गयी यह पुस्तक सामग्री के मौलिक प्रस्तुतिकरण का एक सुन्दर उदाहरण है । व्यक्तित्व विकास, प्रतिमान, पियाजे जैसे दुरूह बिन्दुओं को लेखक ने अपनी विशद विवेचना शैली, और स्वनिर्मित उदाहरणों से बोधगम्य बना दिया है। प्रतिमानों को भी परिचित और भारतीय परिप्रेक्ष्य के है उदाहरणों से सुबोध बनाने का प्रयत्न किया गया है 'अनुबन्धन और क्रियात्मक - अनुबन्धन सिद्धान्त” जैसे अध्याय में तुलनात्मक सारणी से सामग्री को ह्रदयगम करने में बहुत सहायता मिलती है। व्यक्तित्व विकास पर फ्रायड, मूरै, आलपोर्ट, मैसलो और कार्ल रोजर्स के विचारों और सिद्धान्तों को जिस रूप में रखा गया है, उससे लेखक के व्यापक अध्ययन और गहन चिन्तन का दिग्दर्शन होता है ।
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शिक्षा मनोविज्ञान इस क्षेत्र में, हिन्दी में, स्तरीय पुस्तक की कमी दूर करने की दिशा में एक प्रयास है। अधिस्नातकीय स्तर के लिये लिखी गयी यह पुस्तक सामग्री के मौलिक प्रस्तुतिकरण का एक सुन्दर उदाहरण है । व्यक्तित्व विकास, प्रतिमान, पियाजे जैसे दुरूह बिन्दुओं को लेखक ने अपनी विशद विवेचना शैली, और स्वनिर्मित उदाहरणों से बोधगम्य बना दिया है। प्रतिमानों को भी परिचित और भारतीय परिप्रेक्ष्य के है उदाहरणों से सुबोध बनाने का प्रयत्न किया गया है 'अनुबन्धन और क्रियात्मक - अनुबन्धन सिद्धान्त” जैसे अध्याय में तुलनात्मक सारणी से सामग्री को ह्रदयगम करने में बहुत सहायता मिलती है। व्यक्तित्व विकास पर फ्रायड, मूरै, आलपोर्ट, मैसलो और कार्ल रोजर्स के विचारों और सिद्धान्तों को जिस रूप में रखा गया है, उससे लेखक के व्यापक अध्ययन और गहन चिन्तन का दिग्दर्शन होता है ।

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