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Pryawaran pradusan ewam prbandh v.1992

By: Material type: TextTextPublication details: Allahabad Vohra publication and distributors 1992.Description: 258pSubject(s): DDC classification:
  • H 363.73 CHA
Summary: कितनी मोहक है हमारी वसुन्धरा मां की तरह जीवन दायिनी है। हमें कितना प्यार करती है। उसका आंचल लहराता है तो जीवन का संचार करती हुई पवने गतिमान हो जाती है, हृदय सागर में वात्सल्य का तूफान उठता है तो आतपातप्त चराचर पावस वृष्टि से स्नेहरिस्त हो जाता है, अपने बच्चों को भूखा देखती है तो शस्य विखेर देती है ऐसी कल्याण कारिणी, सम्पोषण कारिणी वन्दनीया मां के साथ उसका कोई बेटा दुर्व्यवहार कैसे कर सकता है ? लेकिन वह करता है। वसुन्धरा जो ठहरी अपने निकृष्ट स्वार्थ की आपूर्ति के लिए वह उसके वसुवों को लूटता है और वह क्षीणकाय 'धरा' मात्र रह जाती है। विकास के सच्चे मार्ग से भटका हुआ मानव विनाश के कगार पर पहुंच गया है। उसने अपने जैव-भू-पर्यावरण जिसका वह स्वयं एक अविच्छिन्न अंग है के साथ दुर्व्यवहार किया है। विकास जिसे वह केवल आर्थिक विकास समझने की त्रुटिकर बैठा है के नाम पर उसने अपने मित्रभूत जैव-भू-पर्यावरण को निर्दयता पूर्वक विदोहन किया है। हमारा पर्यावरण अपनी सहनशक्ति खो रहा है। यदि समय रहते हम सचेत न हुए तो संभवतः उसके प्रकोप के सामने हम ठहर नहीं सकेंगे। उसके द्वारा दिया गया दण्ड अत्यन्त कठोर एवं घातक होगा। आज हवा, जल, मिट्टी जो हमारे जीवन के आधार है अपना मौलिक स्वरूप एवं गुण खोते जा रहे हैं तथा हमारे सामने अनेक घातक बीमारियाँ तथा स्वास्थ्य संकट बनकर उपस्थित हो गये हैं। प्रदूषण हमारे जीवन का अंग बनता जा रहा है। प्रदूषित पर्यावरण में जी रहा मानव स्वयं प्रदूषित हो गया है और उसके उदात्त मानवीय गुण विलुप्त होते जा रहे हैं। वह अपराधवृत्ति का शिकार हो चुका है। यदि हमें वसुन्धरा के कल्याणकारी स्वरूप को बनाये रखना है तो उसके साथ सद्व्यवहार करना होगा, उसकी पूजा करनी होगी।
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कितनी मोहक है हमारी वसुन्धरा मां की तरह जीवन दायिनी है। हमें कितना प्यार करती है। उसका आंचल लहराता है तो जीवन का संचार करती हुई पवने गतिमान हो जाती है, हृदय सागर में वात्सल्य का तूफान उठता है तो आतपातप्त चराचर पावस वृष्टि से स्नेहरिस्त हो जाता है, अपने बच्चों को भूखा देखती है तो शस्य विखेर देती है ऐसी कल्याण कारिणी, सम्पोषण कारिणी वन्दनीया मां के साथ उसका कोई बेटा दुर्व्यवहार कैसे कर सकता है ? लेकिन वह करता है। वसुन्धरा जो ठहरी अपने निकृष्ट स्वार्थ की आपूर्ति के लिए वह उसके वसुवों को लूटता है और वह क्षीणकाय 'धरा' मात्र रह जाती है।

विकास के सच्चे मार्ग से भटका हुआ मानव विनाश के कगार पर पहुंच गया है। उसने अपने जैव-भू-पर्यावरण जिसका वह स्वयं एक अविच्छिन्न अंग है के साथ दुर्व्यवहार किया है। विकास जिसे वह केवल आर्थिक विकास समझने की त्रुटिकर बैठा है के नाम पर उसने अपने मित्रभूत जैव-भू-पर्यावरण को निर्दयता पूर्वक विदोहन किया है। हमारा पर्यावरण अपनी सहनशक्ति खो रहा है। यदि समय रहते हम सचेत न हुए तो संभवतः उसके प्रकोप के सामने हम ठहर नहीं सकेंगे। उसके द्वारा दिया गया दण्ड अत्यन्त कठोर एवं घातक होगा।

आज हवा, जल, मिट्टी जो हमारे जीवन के आधार है अपना मौलिक स्वरूप एवं गुण खोते जा रहे हैं तथा हमारे सामने अनेक घातक बीमारियाँ तथा स्वास्थ्य संकट बनकर उपस्थित हो गये हैं। प्रदूषण हमारे जीवन का अंग बनता जा रहा है। प्रदूषित पर्यावरण में जी रहा मानव स्वयं प्रदूषित हो गया है और उसके उदात्त मानवीय गुण विलुप्त होते जा रहे हैं। वह अपराधवृत्ति का शिकार हो चुका है। यदि हमें वसुन्धरा के कल्याणकारी स्वरूप को बनाये रखना है तो उसके साथ सद्व्यवहार करना होगा, उसकी पूजा करनी होगी।

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