Pradusan prithivi ka grahan v.1991
Material type:
- H 363.73 CHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 363.73 CHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 56316 |
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प्रदूषण और पर्यावरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं क्योंकि प्रदूषित पर्यावरण ही हो रहा है । हमारे चारों ओर की जमीन,
हवा और पानी का मैला और गंसों व रसायनों से सराबोर होना ही प्रदूषण है ।
बहुरूपिया प्रदूषण वसुन्धरा में मंद ज़हर
घोल रहा है ।
रसायनों का इस्तेमाल किया हमने उपज बढ़ाने, कीट मारने तथा अपनी खुशहाली और आरामतलबी के लिए लेकिन मार उलट गई हम पर ही । काले रसायन 'हाइड्रोफ्लोरोकार्बन' तो पृथ्वी की रक्षाकारी 'ओज़ोन की छतरी ' को ही छलनी किए दे रहे हैं।
सच, बीसवीं सदी में स्वर्ग से भी प्यारी पृथ्वी की क्या गत बना दी है हमने, और तुर्रा यह कि अपनी करनी का नतीजा जान पाए हम लम्बे अरसे के बाद— जब खुद हम, हमारी मिट्टी, हमारा आकाश, हमारे जलाशय, हमारी फसलें, हमारे मौसम, हमारे पेड़-पौधे और जानवर पर्यावरणी असंतुलन की चपेट से तिलमिलाने लगे । धरती पर थोपे गए ये नकली रसायन
नए गुल खिलाते हुए तबाही मचाने पर तुले हैं ।
देर से चेत जाना भी समझदारी है। वरना रसायनों के 'टाइम बम' समय आने पर हमें कतई नहीं बशेंगे । आगाह करने के लिए रोचक कथा शैली में आदमी के अस्तित्व से जुड़ी इन्हीं बातों का लेखा-जोखा दिया गया है इस प्रदूषण के दस्तावेज में।
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