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Pradooshan-Rodhi vrikesh

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Kitab gharDescription: 131 pDDC classification:
  • H 333.7 SHA
Summary: विश्व में औद्योगिक क्रान्ति के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और इसका नियंत्रण करना सरल कार्य नहीं है। चूंकि औद्योगिक प्रगति को रोक पाना तो सम्भव नहीं अतः हमें उसका विकल्प तलाश करना एवं समाधान निकालना ही होगा। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रदूषण जनित रोगों पर प्रदूषण-उ नियंत्रण पाने के लिए एक विकल्प 'वृक्षारोपण' सुझाया है और इस प्रकार 'चिपको आंदोलन' का पूर्ण समर्थन भी किया है। वृक्ष भी ऐसे जो न केवल पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने बल्कि इमारती सामान, ईंधन, भूक्षरण की रोकथाम, मरुस्थल को हरा-भरा करने तथा औषधी रूप में भी उपयोगी हों। वृक्षों के गुणों-अवगुणों तथा उनमें विद्यमान रसों के मानव शरीर पर प्रभाव का वर्णन भी लेखक ने किया है। वैज्ञानिक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि वृक्षों से भिन्न-भिन्न रसों की प्राप्ति होती है। अतएव अपने इन गुणों के कारण ही ये वानस्पतिक रस प्रदूषणजन्य त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) नाशक एवं रोगनाशक होते हैं। अक्षर क्रमानुसार पुस्तक में 92 वृक्षों का विवरण है जिनका उपयोग सामयिक बीमारियों के उपचारार्थ सुझाया गया है। विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में वृक्षों का नाम देकर लेखक ने पुस्तक को सम्पूर्ण भारत के लिए बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक बना दिया है। अंत में पारिभाषिक शब्दावली और अनुसूची में वैज्ञानिक नामावली लिखने से यह पुस्तक अहिन्दी भाषी पाठकों के लिए और भी सरल हो गई है।
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विश्व में औद्योगिक क्रान्ति के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और इसका नियंत्रण करना सरल कार्य नहीं है। चूंकि औद्योगिक प्रगति को रोक पाना तो सम्भव नहीं अतः हमें उसका विकल्प तलाश करना एवं समाधान निकालना ही होगा।

प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने प्रदूषण जनित रोगों पर प्रदूषण-उ नियंत्रण पाने के लिए एक विकल्प 'वृक्षारोपण' सुझाया है और इस प्रकार 'चिपको आंदोलन' का पूर्ण समर्थन भी किया है। वृक्ष भी ऐसे जो न केवल पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने बल्कि इमारती सामान, ईंधन, भूक्षरण की रोकथाम, मरुस्थल को हरा-भरा करने तथा औषधी रूप में भी उपयोगी हों।

वृक्षों के गुणों-अवगुणों तथा उनमें विद्यमान रसों के मानव शरीर पर प्रभाव का वर्णन भी लेखक ने किया है। वैज्ञानिक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि वृक्षों से भिन्न-भिन्न रसों की प्राप्ति होती है। अतएव अपने इन गुणों के कारण ही ये वानस्पतिक रस प्रदूषणजन्य त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) नाशक एवं रोगनाशक होते हैं।

अक्षर क्रमानुसार पुस्तक में 92 वृक्षों का विवरण है जिनका उपयोग सामयिक बीमारियों के उपचारार्थ सुझाया गया है। विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में वृक्षों का नाम देकर लेखक ने पुस्तक को सम्पूर्ण भारत के लिए बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक बना दिया है। अंत में पारिभाषिक शब्दावली और अनुसूची में वैज्ञानिक नामावली लिखने से यह पुस्तक अहिन्दी भाषी पाठकों के लिए और भी सरल हो गई है।

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