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Rajbhasha kosh: sankshap,manak abhivyakti

By: Material type: TextTextPublication details: Gaziabad; Indo-Vision; 1988Description: 212 pDDC classification:
  • H 423.343 RAJ
Summary: प्रस्तुत कोश लेखक का व्यक्तिगत प्रयास है । पुस्तक की महत्वपूर्ण विशेषता रोमन संक्षेपों का हिंदी पर्याय है। इस विषय पर अभी तक उतना अधिक कार्य नहीं हुआ है जितनी आवश्यकता है। इसीलिए इनका प्रयोग भी अभी तक व्यापक रूप से नहीं हो पाया है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की 'समेकित प्रशासन शब्दावली' में प्रमुख रोमन संक्षेपों के हिंदी पर्याय दिए हुए हैं जो एक प्रकार के मानक रूप कहे जा सकते हैं, लेकिन जब तक इनका व्यापक प्रयोग नहीं होगा तब तक इन्हें पूर्ण सामाजिक स्वीकृति नही मिल पाएगी। सम्भवतः अधिकांश प्रयोक्ताओं को इस प्रकार के प्रयास का ज्ञान नहीं है। इस दिशा में डॉ0 भोलानाथ तिवारी व डॉ0 कैलाश चन्द्र भाटिया ने भी कुछ अतिरिक्त रोमन संक्षेपों के रूप दिए हैं तथा इनसे संबंधित समस्याओं पर विचार किया है । प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने आयोग के निर्धारित पर्यायों को तो यथावत् ले लिया है लेकिन साथ में कुछ अतिरिक्त प्रविष्टियाँ भी दी हैं। इस समय आवश्य कता इस बात की है कि जो भी रूप निर्धारित हो चुके हैं उनका अधिक से अधिक प्रयोग हो ताकि उन्हें सहज सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो सके। यह भी तभी संभव है जब इस प्रकार के प्रयास कई स्रोतों से पाठकों के हाथों में आए। आशा है, प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से रोमन संक्षेपों तथा अभिव्यक्तियों के हिंदी रूप अधिकाधिक पाठकों तक पहुँच सकेंगे। इसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं।
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प्रस्तुत कोश लेखक का व्यक्तिगत प्रयास है । पुस्तक की महत्वपूर्ण विशेषता रोमन संक्षेपों का हिंदी पर्याय है। इस विषय पर अभी तक उतना अधिक कार्य नहीं हुआ है जितनी आवश्यकता है। इसीलिए इनका प्रयोग भी अभी तक व्यापक रूप से नहीं हो पाया है।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की 'समेकित प्रशासन शब्दावली' में प्रमुख रोमन संक्षेपों के हिंदी पर्याय दिए हुए हैं जो एक प्रकार के मानक रूप कहे जा सकते हैं, लेकिन जब तक इनका व्यापक प्रयोग नहीं होगा तब तक इन्हें पूर्ण सामाजिक स्वीकृति नही मिल पाएगी। सम्भवतः अधिकांश प्रयोक्ताओं को इस प्रकार के प्रयास का ज्ञान नहीं है। इस दिशा में डॉ0 भोलानाथ तिवारी व डॉ0 कैलाश चन्द्र भाटिया ने भी कुछ अतिरिक्त रोमन संक्षेपों के रूप दिए हैं तथा इनसे संबंधित समस्याओं पर विचार किया है ।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने आयोग के निर्धारित पर्यायों को तो यथावत् ले लिया है लेकिन साथ में कुछ अतिरिक्त प्रविष्टियाँ भी दी हैं। इस समय आवश्य कता इस बात की है कि जो भी रूप निर्धारित हो चुके हैं उनका अधिक से अधिक प्रयोग हो ताकि उन्हें सहज सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो सके। यह भी तभी संभव है जब इस प्रकार के प्रयास कई स्रोतों से पाठकों के हाथों में आए। आशा है, प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से रोमन संक्षेपों तथा अभिव्यक्तियों के हिंदी रूप अधिकाधिक पाठकों तक पहुँच सकेंगे। इसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं।

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